सुनो मर्दो

26-05-2014

मारो
हाँ मारो हमें कि हमने घूँघट उठाए बुरके उतारे
घर की दहलीज़ लाँघी
लेनी चाही साँसें... अपनी

हमें मारो कि जिस दिशा में
हमें पीढ़ि‍यों नहीं जाने दिया गया
यह बताकर कि वहाँ स्त्रियों का भूखा भे‍ड़ि‍या रहता है
उसी दिशा से हम लौट आईं
कुछ और जीवित होकर

मारो हमें कि हमने
परमेश्‍वर को पति की शक्‍ल में भी मार डाला
छोड़ दिया कुँओं में कूदना
चुपचाप ज़हर पीना
और अपने शरीर पर शर्म करना

हमें दौड़ा-दौड़ाकर मारो
कि हमारे पाँवों को तुम्‍हारे रास्‍ते चलने से
मना करने का शऊर आ गया
तुम्‍हारे बावजूद

मारो कि हमारे रास्‍ते
अब उतने मुश्किल नहीं रहे
और मारो कि तुम अब
ज़बान से कुछ कहने के काबिल नहीं रहे

अब यही होना है कि तुम
लाचार मर्दानगी के फतवे सँजोते रहो
हम बढ़ती चली जाएँ... और तुम
प्रहारों की भाषा में रोते रहो!

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