सुन-सुन गुड़िया 

01-05-2019

सुन-सुन गुड़िया 

भावना सक्सैना 

यू ट्यूब में पुराने गानों की मिक्स अल्बम लगा कर काम करना शुरू ही किया था कि आँखें झरने लगीं गीत सुनकर... 
"सात समंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से..." 

यह गीत जब भी कानों में पड़ता है शांत दरिया बह उठता।  क्यों वह नहीं जानती! 

पापा शायद उसके लिए कभी गुड़िया लाये भी नहीं थे, हाँ पापा के आने का इंतज़ार हमेशा रहता था... शायद इसीलिए गुनगुनाया करती थी, "गुड़िया चाहे ना लाना, पप्पा जल्दी आ जाना"। 

तब कोई फोन नहीं होता था, ख़त और तार ज़रूर होते थे, पर वह आयें या न आयें, त्योहारों पर इंतज़ार होता था, दशहरा की छुट्टियों और होली पर आना ही होता था पापा को। दिनों-दिन सुबह से शाम गली में रिक्शे की घण्टी की टुनटुनाहट पर वह दौड़ पड़ती थी और गुनगुनाया करती थी... "गुड़िया चाहे ना लाना पापा जल्दी आ जाना..."।

पापा आते थे, लेकिन गुड़िया नहीं लाते थे, कभी कपड़े या मिठाई ज़रूर लाते थे तो कभी कुछ भी नहीं भी लाते थे और उसे कोई रंज न होता था कि पापा तो मिल ही जाते थे। 

गुड़िया थी उसके पास। आज भी वो पहली वाली गुड़िया याद है पर वो पापा नहीं लाए थे। 

अम्मा ने पुराने कपड़े को गोल लपेटकर ऊपर से बाबा के कुर्ते से बचा नरम सफेद कपड़ा लपेटकर महीन धागे के छोटे टाँकों से सिला था। रंगीन तारकशी से आँख नाक और मुँह काढ़ दिए थे बुआ ने। लाल तारकशी से बने होंठ कितने सजीव और सुंदर थे, हल्के से मुस्कुराते हुए। काली ऊन के बालों को गूँथ दो लम्बी मोटी चोटियाँ भी कितनी अच्छी लगती थीं। छींट के कपड़ों के छोटे-छोटे फ़्रॉक हर दिन बदलने का चाव देखकर अम्मा और बुआ ने कई सारी फ़्रॉकें भी सिल दी थीं उसकी गुड़िया के लिए और वह इतरा-इतरा कर सबको दिखाती थी...। 

फिर मेले से एक गुड़िया आई थी, जिसके हाथ पैर और गर्दन गोल घूम जाते थे... गोल मटोल बड़ी-बड़ी आँखों और रेशमी बालों वाली। एक छोटा सुंदर सा कंघा भी था गुड़िया के साथ पैकेट में। ख़ूब ख़ुश थी वह अपनी गुड़ियों के संग। 

लेकिन इन गुड़ियों से भी ज़्यादा पसन्द थी सुन-सुन गुड़िया की कहानी, जिसे हर रात सुना जाता और दिन भर गुड़िया को गोद में बिठा कहा जाता- "सुन-सुन गुड़िया सुन-सुन बेटी जो थी रानी वो हुई बाँदी जो रही बाँदी वो हुई रानी..."! 

आज झरती आँखों को लिए वह गुनगुना न पाई पप्पा जल्दी आ जाना, कि किसी बाँदी के न होने पर भी वह रानी न बन सकी और पापा के एक शहर में रहते हुए भी वह उनसे अपना दर्द बाँटना न चाहती थी। पालने में लेटी छह माह की अपनी गुड़िया को उठा सीने से लगाते सजल आँखों से कह उठी, "सुन-सुन गुड़िया, सुन-सुन बेटी।"

1 टिप्पणियाँ

  • 1 May, 2019 04:40 AM

    बहुत ही प्यारी और दिल को छू लेने वाली कहानी । शुभाशीष भावना ।

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