सुख आत्मा लेती है

15-05-2021

सुख आत्मा लेती है

राजनन्दन सिंह (अंक: 181, मई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

शरीर
महज़ माध्यम है
सुख आत्मा लेती है
दुख भी आत्मा ही सहती है
आत्मा तृप्त होती है
आत्मा ही तरसती है
आत्मा रोती है
आत्मा ही गाती है
आत्मा चढ़ती है 
आत्मा ही गिरती है
पतित आत्मा होती है
महानता भी आत्मा ही प्राप्त करती है
शरीर के अनैतिक सुख पर 
संभव है आत्मा कभी क्षुब्ध हो
मगर शरीर के कष्ट पर
आत्मा कभी वंशी नहीं बजाती
ज़िंदगी के सुख-दुख मज़ा-सज़ा
आत्मा ही भोगती है
जवानी आत्मा को रस देती है
बुढ़ापा आत्मा को ही डँसता है
शरीर
महज़ माध्यम है
सुख आत्मा लेती है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में