सुबह (नन्दलाल भारती)
नन्दलाल भारतीपक्षियों के चहकने का सप्त सुर।
पोखरों में वनमुर्गियों का कलरव,
बंस के झुरमुटों से महोखो का स्वर।
जंगल की हरियाली घास पर ओस,
भरे तालाब पोखरे आँख भर देखूँगा।
विषमताएँ - ना रहें उत्पीड़न क्रन्दन
संघर्षरत आम आदमी की पीड़ा,
कल नहीं बिल्कुल नहीं होगी।
क्योंकि कल पूर्ण समानता का सम्राज्य होगा।
जंगल होगा आबाद,
जीव जन्तुओं का संगीत निशा होगी।
एकता समानता का आलम होगा,
भुखमरी गरीबी कल नहीं होगी
मैं बहुत खुश होऊँगा सफलता पर।
कल बूढ़े बरगद की छाँव,
खुशमिजाज चिन्तनशील बैठूँगा।
वो सुबह कब आयेगी भारती आज मैं डरा सहमा,
बम की भिभीषिका की आशंका में,
लोगों के पूर्वाग्रहों से घिरा भारती,
अपने ही लोगों के बुने मकड़ जाल में ,
दुर्भाग्यवश संघर्षरत,
कल की नयी सुबह की इन्तज़ार में।