स्मृति

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

हे, ईश्वर!
तूने मुझे किसी उद्देश्य के लिए भेजा है
या भटकाव के लिए।
एक तरफ़ इस जग में उद्देश्य नज़र आता है
तो दूसरी तरफ़ भटकाव।
सोचता हूँ हृदय को खंगाल डालूँ
और ढूँढ़ लूँ वो सारी तहें
जिन्हें खोलने के लिए भेजा है
शायद ईश्वर ने इस दुनिया में मुझे।
लेकिन साथ ही साथ
भटकाव भी तो दे दिया है
ईश्वर ने मुझे।
सोचा था ध्यान करूँगा और
खोल लूँगा हृदय की पोटली।
ताकि ढूँढ़ सकूँ उन उद्देश्यों को
जो ईश्वर ने आते वक़्त मुझे सौंप दिए थे
इस पोटली में बाँधकर।
अब तक एक भी तह नहीं खोल सका हूँ
आलसी जो ठहरा मैं।
लेकिन ध्यान रहे
समय तेरी उम्र को तेज़ी से चुराता जा रहा है
समय रहते सजग न हो पाया तो
दबी की दबी रह जाएँगी तहें
और वापस लौटेगा तो
वहाँ कोई जवाब नहीं दे पायेगा
बेटा को नकारा देख
परम पिता को रोना आएगा
और एक बाप का
अपनी औलाद से विश्वास उठ जाएगा।
नहीं;
ऐसा कभी नहीं हो सकता।
हे माँ!
मुझे समझ दे और शक्ति दे
ताकि मैं अपने पिता का
ज़िम्मेदार बेटा बन सकूँ
और दुनिया में भेजने के
पिता के उद्देश्य को पूरा कर सकूँ।
पिता मुझे हँसते-हँसते गले लगा लें
उन्हें दुःखी कभी न देख सकूँ।

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