सिलसिला

01-07-2021

सिलसिला

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मोहब्बत का सिलसिला
थम सा गया।
नफ़रतों का सिलसिला
बढ़ सा गया।
सोचा था
जी नहीं सकेंगे
तुम्हारे बिन।
मगर जीवन का सिलसिला
बढ़ सा गया ।
फिर सोचा चलो
जीवन की एक
नई शुरुआत करते।
मगर बनावटी
ख़्वाबों का सिलसिला
बढ़ सा गया।
फिर सोचा चलो
बनावटी ख़्वाबों के
सहारे ही जीवन जी लेते हैं
मगर तन्हाई का सिलसिला
फिर से बढ़ सा गया।

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