शोभांगी

01-05-2020

शोभांगी

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

तुम्हारा मिलना
मेरे लिए प्रकृति का सबसे बड़ा सच है
ईश्वर का उपहार
सच कहते हैं कुछ लोग
असंभव कुछ भी नहीं
हमारी कल्पना से परे
कुछ नहीं होता
क्योंकि हम जो कुछ सोचते हैं
ब्रह्मांड में कहीं ना कहीं घट रहा होता है
अथवा
घटना शेष है।


तुम्हारा मिलना प्रकृति के नये-नये रूपों से
परिचित होने जैसा है।
कभी शिष्या बनकर
पूछती हो कई-कई प्रश्न
नन्ही बिटिया की तरह
कानों की बाली के लिए तुम्हारा मचलना
आह्लादित करता है भीतर तक
मित्र की तरह
यात्रा की थकान
मुझसे ज़्यादा झेली है तुमने मेरे लिए
पत्नी की तरह हर शाम
मेरे लौटने के इंतज़ार में कितने क्षण
घड़ी देखकर गुज़ारती हो तुम
मेरी सुरक्षा की कामना करता
तुम्हारा रक्षासूत्र
कहाँ कभी अलग होता है मुझसे
और...  और. . .
उदास पलों में प्रियतमा बन
मेरे कांधे पर सर रखकर मुझे सहलाती
तुम्हारी हथेलियों का स्पर्श
हरा देता है जीवन के कठोर सच को
सचमुच
प्रकृति रोज़ नये-नये रूपों में
उतरती है मेरे आंगन में
शोभांगी
तुम्हारा होना सार्थकता है मेरे जीवन की
                               तुम्हारा न होना 
                             जैसे अधूरा हो जाना
                         ओस के बिना फूल की तरह।

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