शिमला डायरी

15-06-2021

शिमला डायरी

मनोज शर्मा (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

दिन तो रोज़ आते हैं और बीत जाते हैं। पर कोई-कोई दिन इतना अलग होता है कि उसे याद करना यक़ीनन सुखद लगता है। दिल चाहता है उस दिन की समृति को बार-बार दोहराया जाय। पहाड़ी क्षेत्रों पर जाना मेरे लिए एक दुर्लभ सोच से कम नहीं था फिर शिमला की पहाड़ियों पर जाना यक़ीनन एक बड़ी उपलब्धि था। शिमला श्यामलेह से बना है और इसका इतिहास अति प्राचीन है। 

मई में दिल्ली की गर्मी तो देखे ही बनती है क्योंकि इन दिनों दिल्ली में गर्मी अपने चरम पर होती है। 05 मई 2018 को रात के भोजन के उपरांत मैंने शिमला की ओर रुख किया। मुझे मालूम था कि शिमला तक पहुँचने में क़रीब साढ़े आठ घंटे लगते हैं। शनिवार को रात्रि भोज के पश्चात मैंने शिमला प्रस्थान के लिए साधारण बस में जाना ही मुनासिब समझा। साधारण बस की साधारण सीट पर बैठते ही मेरी आँखें नींद से मुँदने लगीं। जैसे-जैसे बस तेज़ दौड़ती बस की खिड़कियों के शीशे भी हवा के तेज़ बहाव के कारण चीख़ने लगते। क़रीब अम्बाला पहुँचने तक मैं उनींदा-सा रहा। जब भी बीच में मेरी आँख खुलती पीली लाइट के खम्बे दूर तक साथ-साथ बढ़ते दिखते। अम्बाला में ब्रेक लेने के बाद गाड़ी परमानु के क़रीब पहुँच गयी अब तक नींद पूरी तरह आँखों से दूर जा चुकी थी। बस की खिड़की से बाहर गहरा अँधेरा था जिसके पीछे छिपी पहाड़ियाँ उस अँधेरे में कहीं गुम थीं। अचानक ही जब किसी मोड़ पर हमारी बस मुड़ती तो बस की लाईट सुदूर पहाड़ियों पर चली जाती जिन्हें देखते ही सारे शरीर में एक अजीब-सी सिहरन दौड़ जाती। मुझे लगा कि मै अब पहाड़ों के मध्य हूँ। हलकी नर्म ठण्ड से मोज़ों में लिपटे पैर सिकुड़ने लगे थे। घुमावदार सड़क पर हवा जैसे मुँह पर गिरती दो पल के लिए मेरा चेहरा सुन्न हो जाता। 

जैसे ही बस किसी मोड़ से घूमती अनजाने डर से मेरी आँखें मुँद जातीं। मैंने महसूस किया कि मेरा हलक़ सूखता जा रहा है। बोतल का ढक्कन खोलकर मैं खिड़की से बाहर देखता रहा और धीरे-धीरे पानी को गले में उड़ेलता रहा। गोल-गोल रास्तों और घूमती सड़कों पर मेरा सिर अब चकराने लगा था। मैं पूरी तरह सहम कर बैठा रहा और बार-बार थूक अन्दर की और निगलता। सामने घुमावदार कट सोलन का था। रिहायाशी इलाक़े पीली रौशनी में नहाये हुए थे। दिल्ली की गर्मी को अब तक मैं भूल चुका था और हिमाचल की ठण्ड का एहसास अब होने लगा था। बैग में रखी लोई से मैंने ख़ुद को पूरा ढाँप लिया। बस घूमती रही और जाने कब मेरी आँखें नींद में मुँद गयीं। 

सुबह आँख खुली। भोर का हल्का उजास सामने था। बस धीरे से ढलान की ओर उतरने लगी। बस शिमला के तुतिखंदी बस अड्डे को पार करती हुई बढ़ती चली जा रही थी। मैंने चलती बस के अन्दर चारों ओर नज़र घुमाई। बस के अन्दर के सभी चेहरे अब बदले हुए थे। मैं उन्हें विस्मय से देखता रहा ओर वो मुझे। मैंने बस से बाहर की ओर इशारा करते हुए पूछा कि क्या मैं शिमला में आ चुका हूँ। कुछ चेहरे मुझे घूरते रहे और कुछ हँसने लगे। 

बस में एक अजनबी चेहरे ने मेरे कंधे को छुआ और कहा कि तुतिखंदी तो आपकी विपरीत दिशा में हैं। मैं उसे हैरत और मायूसी से देखता रहा। मैंने पल भर में अपना बैग सँभाला और बस में गेट की और दौड़ते हुए कंडक्टर को बस रोकने की मिन्नतें करने लगा। कंडक्टर ने मुझे बेरुख़ी से देखते हुए बस को रोकने का निर्देश दिया। बीच सड़क पर मुझे उतारकर बस आगे बढ़ गयी। खिड़की से बाहर निकले कुछ चेहरे मुझे देखकर मुस्कुराते रहे। 

बीच सुनसान सड़क पर उस समय मैं अकेला था। तेज़ ठंडी हवाओं से मेरी देह काँप रही थी। मैं पीछे की ओर लौटता जा रहा था। अनजान रास्ते पर एक और ऊँची चट्टानें थीं और दूसरी और भयानक घाटियाँ। पक्षियों का कलरव चारों और गूँज रहा था पर मुझे जाने क्यों अजीब-सा डर सता रहा था। पहाड़ों के बीच में से घूमती सड़क पर मैं जैसे ही आगे बढ़ा जाने कहाँ से लंगूरों कि एक फ़ौज सामने आ गयी। मैं पल भर वहीं स्तब्ध हो गया। दोनों और ख़तरा मँडरा रहा था। सुबह की सैर करने वाले कुछ लोगों ने मुझे देखा और मेरी मनोदशा को भाँप कर मुझे अपने साथ ले लिया। मैं भी तेज़-तेज़ क़दमों से उनके साथ हो लिया और उस कठिन रास्ते को पार किया। अब मैं शिमला के बस स्टैंड पर आ चुका था। 

मुझे शिमला के महली में 9 बजे तक पहुँचना था। मैंने 6:20 की बस ली और 7 बजे तक वहाँ पहुँच गया। महली से मुझे बैल्स इंस्टिट्यूट पहुँचना था जो मेरा परीक्षा केंद्र था। परीक्षा केंद्र वहाँ से क़रीब ढाई कोस दूर नीचे उतराई पर था। मैंने ऊपर से ही खड़े हुए बैल्स इंस्टिट्यूट की धुँधली-सी इमारत देखी थी। घूमती ढलान पर मैंने चलना आरम्भ किया। आकाश बादलों से भरा था गहरे काले बादलों और शीतल समीर के बीच सब कुछ धुँधला-सा नज़र आ रहा था। गँदली सी धुँध बढ़ती ही जा रही थी। हर तरफ कोहरा सफ़ेद धुँए कि तरह उड़ रहा था। तेज़ घुमावदार ढलान से भरे रास्तों पर उतरते हुए मैंने महसूस किया कि शिमला के ऐसे ठण्डे स्थान पर मेरा हाफ़ स्लीव्ज़ में आना यक़ीनन मूर्खतापूर्ण निर्णय ही था। मेरे हाथ ख़ुद ब ख़ुद मेरी बग़लों के भीतर सिमटते जा रहे थे। मैं ख़ुद को कोसता और ठण्ड में ठिठुरता हुआ आगे बढ़ता गया। आधे कोस की दूरी से अब बैल्स इंस्टिट्यूट स्पष्ट दिखाई देने लगा था। परीक्षा केंद्र को क़रीब होते देखकर मैं मन ही मन ख़ुश होने लगा। 

मैं 7:45 पर बैल्स इंस्टिट्यूट के गेट पर था। गेट पर बहुत से परीक्षार्थियों को देखकर मन प्रसन्नता से भर गया। बादल गरज रहे थे। बारिश से बचने के लिए जल्दी ही हम सब गेट से अन्दर की ओर बढ़कर कमरों में घुस रहे थे। परीक्षा के लिए मेरी तैयारी काफ़ी अच्छी थी। इसी से उस रोज़ की परीक्षा अव्वल रही परीक्षा दो भागों में क़रीब चार घंटे चली। झमाझम बारिश होती रही। परीक्षा के मध्यांतर में मैंने बाहर के दुर्लभ दृश्यों को अपने कैमरे में क़ैद किया। पहाड़ों की चोटियों पर से गिरता पानी और हरे साफ पत्तों को तेज़ हवा में चहकते हुए देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो मैं स्वर्ग में आ बसा हूँ। खुले मैदान में उड़ता कोहरा सफ़ेद रुई–सा दिखाई दे रहा था। पहाड़ों की मिट्टी कि गंध दूर तक फैली थी। कितने अद्भुत दृश्य उस रोज़ तस्वीरो में क़ैद हो गए थे। आज भी उन्हें देखकर मैं शिमला की उन्हीं वादियों में पहुँच जाता हूँ। 

परीक्षा के बाद भी बूँदाबाँदी होती रही। मैंने बारिश में ही वहाँ के स्थानीय पहाड़ी ढाबे में लंच किया। बारिश के कारण लंच में ज़्यादा विकल्प नहीं थे। लंच ठीक-ठाक ही था; वैसा नहीं था मैंने यहाँ के लिए सुना था। मैं धीरे-धीरे महली कि तरफ़ ऊपर बढ़ने लगा। घूमती चढ़ाई के दो मोड़ ही पार किये थे कि शरीर हाँफने लगा। ऊपर महली तक पहुँचना यक़ीनन टेढ़ी खीर नज़र आ रहा था। सहसा मेरा फोन बजा। अविनाश का कॉल था। वो उस रोज़ शिमला में ही ठहरा था। उसने पहले भी मुझे 2 बार ट्राई किया था। 

मुझे वहाँ पाकर उसके होठ ख़ुशी से फैल गए। वो गाड़ी लेकर वहाँ आया था। उसने पल भर में मुझे पहचान लिया और झट से गाड़ी का गेट खोल दिया। मैंने उससे हाथ मिलाया और मुस्कुराते हुए उसके बग़ल में बैठ गया। उसके होंठ ख़ुशी से फिर ठिठके उसने मेरी आँखों में देखते हुए मुझसे पूछा, "कहिये सर आप कहाँ घूमना पसंद करोगे?"

मैं हैरत से उसे देखता रहा। क्योंकि मेरे लिए यह प्रश्न बहुत ही पेचीदा था। अब मैं उसे क्या जवाब देता! मैंने कहा, "आप जहाँ चाहें, मेरे लिए तो शिमला में आना ही बड़ी बात है," और मैं मुस्कुरा दिया। ठंडी हवा में नमी थी जिससे मौसम और भी सर्द होता जा रहा था। मैंने गाड़ी में बैठते ही दरवाज़ों के शीशे ऊपर चढ़ा लिए जिससे मुझे कुछ उष्णता का एहसास हुआ। उस रोज़ शिमला में ख़ासी भीड़ थी। इसका कारण शायद UGC की सेट परीक्षा का आयोजन ही था। हर तरफ़ ठिठुरते चेहरे थे। कोई कश्मीरी शाल में लिपटा था तो कोई बंद गले की जर्सी में ख़ुद को समेटे था। ऊँचे पहाड़ों पर कोहरा दूर तक दिखाई दे रहा था। ठण्ड और कोहरे का ऐसा संगम मई के महीने देखकर मेरी आँखे खुली रह गयीं। घूमती छोटी सड़कों पर गाड़ियाँ जैसे रेंगती जा रही हों। ऊँचे चीड़ और युकोलिप्टिस के भीगते वृक्ष हवा में लहरा रहे थे। 

मैंने बाईं कलाई पर बँधी हुई घड़ी में देखा शाम के साढ़े चार बजे हैं। बारिश के बाद अब सारी सड़कें गीली हैं। आकाश अभी भी गँदला है। हल्की-हल्की बूँदाबाँदी अभी भी हो रही है। अविनाश ने गाड़ी को एक पार्किंग में लगा दिया। हम जैसे ही गाड़ी से बाहर आये, हरी नरम ठंडी घास पर चलते हुए एक ठंडी सिहरन का एहसास हुआ। अविनाश ने बताया कि पहले हम माल रोड कि तरफ़ चलेंगे, हालाँकि थकावट और ठण्ड से पैर सुन्न हैं पर मॉल रोड पर जाने भर कि कल्पना मात्र से क़दम ख़ुद ब ख़ुद उस ओर दौड़ने लगे। अविनाश अच्छा इंसान ही नहीं बल्कि एक कुशल गाइड भी है जो शिमला की हर छोटी–बड़ी जगह से अच्छे से वाकिफ़ है। भीड़ से भरे बाज़ार से होते हुए हम दोनों आगे बढ़ने लगे। शिमला में पक्की सड़कें थीं; हर और रौनक़ थी। सबसे पहले शिमला की प्रसिद्ध लाइब्रेरी मेरी आँखों के सामने थी। काश उस रोज़ अवकाश न होता चूँकि छुट्टी का दिन होने के कारण यह लाइब्रेरी आज बंद थी। मैं कुछ देर उसके सामने खड़ा होकर उसकी भव्यता को निहारता रहा। लाइब्रेरी कितनी विशाल होगी हज़ारों किताबें होंगी। उठे हुए बड़े मेज़ के किनारों पर बैठे कितने विद्यार्थी पुस्तकें पढ़ने में मगन होंगे। सफ़ेद उजली रोशनी के बीतर कितना सन्नाटा होगा। किताबों के पन्ने पलटने की दुर्लभ आवाज़ें बार-बार कानों में पड़तीं। उलटे वी शेप में बनी यह लायब्रेरी बेहद सुन्दर और बड़ी थी। जिसमे सहेज कर रखी गयी हजारों किताबों की गंध मुझे सहज ही अपनी और आकृष्ट कर रही थी। बड़े भवन के बाहर ठंडी हवा से मेरे शरीर के रोयें ठिठक गए। मैं रोमांच से काँपता रहा। वहाँ से दस क़दम की दूरी पर चलते ही माल रोड का प्रसिद्ध गिरिजाघर आ गया था। शिमला आने वाले हर सैलानी यहाँ ज़रूर आते हैं। पीली नीली लाईट में चमकता यह ऊँचा गिरिजाघर ईसाईयों का ही नहीं बल्कि हर धर्म के लोगों का प्रिय स्थल है। आकाश पर लालिमा छाई हुई थी। जिस ओर देखो मुस्कुराते बेपरवाह युवक-युवतियों के उन्मुक्त चेहरे रंग-बिरंगी टोपियों में खिले थे। पेड़ो के हरे पत्तों से पानी कि बूँदे टप-टप ढुलक रहीं थीं। 

नीली आँखों वाली एक लड़की अपनी माँ के साथ मेरे पास आयी और काठ बाज़ार का रास्ता पूछने लगी; मैं पल भर उन्हें देखता रहा और फिर मैंने हल्की-सी मुस्कराहट के साथ उन्हें बायीं ओर आगे बढ़ने के लिए कहा। माल रोड के बायीं तरफ काठ बाज़ार था जहाँ लकड़ी से बने सामान खिलौनों की भरमार थी। हमें यहाँ माल रोड से काठ बाज़ार ही जाना था। बारिश की हल्की-हल्की फुहारों से मौसम ख़ुशगवार तो था ही पर दूर पहाड़ों पर जमी कोहरे की पर्त से नज़ारा और भी आकर्षक लग रहा था। काठ बाज़ार पहाड़ों के बीच रास्ते की पगडंडियों पर बसा था। जिसके बायीं ओर छोटी–बड़ी दुकानें थीं जिनपर बैठे पहाड़ी दुकानदारों की आने–जाने वाले सैलानियों को परंपरागत सामानों को दिखाने की होड़-सी लगी थी। उनके सिर पर हिमाचली टोपियाँ व् उनकी जवान पंजाबी या पहाड़ी थी। उसी दिशा में सामने दूर पहाड़ों पर शिमला का जाखू मंदिर स्थित था। प्रसिद्ध जाखू मंदिर में हनुमान की विशाल प्रतिमा है। पहाड़ों पर सुसज्जित जाखू मंदिर वहाँ के लोगों का आस्था का केंद्र है। अविनाश ने कई मर्तबा मुझे उस मंदिर को देखने के लिए रोकना चाहा। वक़्त झटपट बीतता जा रहा था। क़रीब सात बज रहे थे। मुझे आज ही वापस लौटना था। मैंने पहाड़ों पर बने उस सुंदर मंदिर की ओर देखते हुए अविनाश को अपनी असमर्थता बताई। उसने दो-एक बार मुझसे फिर कहा पर मैंने फिर आने का हवाला देते हुए उसे अभी के लिए टाल दिया। मेरे जवाब से उसकी आँखों में सूखी हँसी थी। हम ढलान की और बढ़ते गए। चिकनी पर बेडौल सड़क पर पानी अब भी तैर रहा था। आगे बढ़ते हुए मैंने देखा कि शिमला की पुरानी इमारतें अब यहाँ नए रेस्तरां और होटल्स में तब्दील हो गयी थी। वहीं बीच में एक पुरानी नक़्क़ाशी इमारत को मैं देर तक देखता रहा। अविनाश मेरे दिल कि बात को समझ गया और मुझे उस इमारत के अन्दर ले गया जिसके अन्दर एक रेस्तरां बना था। कुर्सी पर कपड़ा फेरता हुआ यकायक एक ख़ानसामा प्रकट हुआ। वो मुस्कुराता हुआ हम दोनों को अन्दर ले गया। मैं शाकाहारी हूँ अत: मेरी पसन्द का खाना अविनाश ने आर्डर किया। इस रेस्तरां का भोजन काफ़ी लज़ीज़ था। बिलकुल घर जैसा और वो छोटे कद का ख़ानसामा बहुत हँसमुख था उसे जैसे ही पता चला कि मैं दिल्ली से आया हुआ हूँ उसने मेरी थाली में दो चपाती ज़्यादा रखते हुए कहा कि आप यहाँ की रुमाली रोटी खाएँगे तो यक़ीनन उसे याद करेंगे। उसका नाम मनमोहन था। मनमोहन का मनमोहक चेहरा अभी भी मेरी आँखों में घूम रहा है। रेस्तरां से निकलते हुए मैंने उसे छोटी-सी टिप दी थी तो उसकी आँखों में मीठी चमक थी। बाज़ार की ठंडी सड़कें पीली रोशनी में नहाई हुई थीं। आसमान एक बार फिर बादलों से भर गया था। हम काले आसमान को निहारते हुए गीली सड़कों पर चलते रहे। 

क़रीब घंटा भर हम बाज़ार में टहलते रहे। बारिश अब बंद हो गयी थी पर बादल अभी भी गरज रहे थे। घने बादलों को देखने से यह तो तय था कि रात को भी बारिश होगी। सहसा आसमान में तेज़ बिजली कौंधी जिसका प्रकाश पलभर के लिए एक महीन-सी रेखा के रूप में सड़क पर दिखा। मैं घबरा-सा गया। मैंने अविनाश को जल्दी ही तुतिखंदी बस अड्डे की ओर लौटने का आग्रह किया। 

कार धीमी स्पीड से बस अड्डे की ओर बढ़ने लगी। कार के शीशे पल भर में ही घने कोहरे से ढक गए। अविनाश जैसे ही वाइपर से गाड़ी का शीशा साफ़ करता वैसे ही सामने लम्बे वृक्ष किसी दैत्य की भाँति नज़र आते। अब अँधेरा बढ़ गया था पर सड़क पर अभी भी कहीं-कहीं हलचल थी। काली ऊँची पहाड़ियाँ अब दूर से और भी डरावनी दिखाई दे रहीं थीं। बस अड्डे के पास रास्ता साफ़ दिखा। रात के सवा 9 बजे तुतिखंदी बस अड्डा होलिज़न लाइट्स से चमक रहा था। दिल्ली के लिए बस क़रीब दस बजे की थी। थकावट से निज़ात पाने हेतु मैंने इस बार वॉल्वो बस को ही प्राथमिकता दी। दिल्ली के लिए चलने वाली वॉल्वो बस की खिड़की की सीट पर बैठकर अविनाश को देखता रहा। उसका थका चेहरा मेरी आँखों में झाँक रहा था। पाँच मिनट में बस चल पड़ी अविनाश के सूखे होठों पर नर्म मुस्कराहट फैली थी। मैंने शुक्रिया करते हुए अपने हाथ हवा में लहरा दिए। बस के चलने तक वो मुझे एकटक देखता रहा। बस ने हॉर्न दिया और आगे बढ़ने लगी पल भर में ही अविनाश ओझल होता गया। बस ने घुप्प अँधेरे में आकर कब तेज़ स्पीड पकड़ ली। दिन भर की बातें और दृश्य मेरे सामने घूमने लगे पर थोड़ी ही देर में मुझे कुछ भी पता नहीं चला क्योंकि मैं कुछ ही देर में गहरी नींद में जा चुका था। 

1 टिप्पणियाँ

  • 17 Aug, 2021 03:42 PM

    बहुत सुन्दर यात्रा वृतान्त! बड़ी खूबसूरती से उकेरा है रचनाकार ने अनुभूतियों को अनन्त शुभकामनाएँ |

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