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शहर में ये कैसा धुँआ हो गया
कहीं तो बड़ा हादसा हो गया
किसी ज़िद, न जाने, वहाँ था खड़ा
शिनाख़्त, मेरा चेहरा हो गया
हुकुम का ग़ुलाम, जिस की जेब हो
शह्र का वही, बादशा हो गया
हमारे वजूद की, तलाशी करो
ये खोना भी अब, सिलसिला हो गया
ये चारागरों जानिब ख़बर मिली
मर्ज़ ला इलाज-ए-दवा हो गया
अदब से झुका एक, मिला सर यहाँ
'सलीक़ा' 'सुशील' का, पता हो गया