सीख ले धूप की तल्खियाँ झेलना
दिलबाग विर्कसीख ले धूप की तल्खियाँ झेलना
उम्र भर कब रहा साथ साया घना।
बन बवंडर गई देखते – देखते
आग से तेज़ है बात का फैलना।
हाँ कही जब कभी, जाल खुद बुन लिया
दाद देना उसे, कर सका जो मना।
हार हिस्सा रहेगा सदा खेल का
जीत की चाह रखकर भले खेलना।
तंग है सोच, दिखती नहीं खूबियाँ
आदतन वो करे सिर्फ आलोचना।
देखने का तरीका बदल तो सही
ख़ूबसूरत दिखेगा जहां, देखना।
तोड़ दो, अब ज़रूरत नहीं जाम की
बिन पिए आ गया 'विर्क' ग़म ठेलना।