सावन के झूले 

15-08-2021

सावन के झूले 

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

सावन के झूले 
परदेसी लौटे 
जो घर का थे पथ भूले
 
बहकी है अमराई
साजन संग गोरी 
झूले में जब मुसकाई
 
सावन की बूँदें
सोचे क्या सजनी 
झूले में अखियाँ मूँदे
 
बूँदों कि छम छम 
झूले में थिरक रही
पायल की मधुर सरगम
 
इतराए सावन
राधा रानी जब झूले 
झुलाए नंद के नंदन
 
बरखा दीवानी है 
प्रेम रस भींज रही
कोई नई कहानी है
 
रुत मदमाती है 
सखियों संग गोरी 
जब कजली गाती है
 
झूले सावन के 
लेकर आए हैं 
संदेशे मनभावन के

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में