सविता अग्रवाल - दोहे - 001

14-07-2016

सविता अग्रवाल - दोहे - 001

सविता अग्रवाल ‘सवि’

१.
अज्ञानता जग से मिटे, मिटे दूर सब पाप।
विनती ऐसी मैं करूँ, हो न कोई संताप॥

२.
नाच रहे हैं भक्त सभी, गा रहे मंगल गान।
ढोल मंजीरे बज रहे, पाने को भगवान॥

३.
समय साथ चलता रहे, वही है सच्चा मीत।
उससे ही सब हार है, और उसी से जीत॥

४.
हाथ फैलाना न पड़े, ऐसे दो वरदान।
दान भावना मन रहे, बना रहे यह ज्ञान॥

५.
पूनम की हर रात में, खिल जाता है चाँद।
तारे भी जगमग करें, देते उसको दाद॥

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