सर्दी की वो शाम
रीता तिवारी 'रीत'सर्दी की वो शाम, जब हम सभी भाई-बहन खेल रहे थे। हम नानी के घर गए हुए थे। सर्दी का मौसम था। एक तो कड़कड़ाती ठंड और ऊपर से बरसात मौसम को ठंडक प्रदान कर रही थी। हम सबको ठंडी लग रही थी। हम सभी भाई-बहन नानी से ज़िद करने लगे, "नानी आग जला दो, बहुत ठंडक लग रही है। नानी ने पहले तो मना किया लेकिन जब हम सभी ज़्यादा ज़िद करने लगे तो नानी मान गई। नानी के लिए सबसे बड़ी दुविधा थी आग कहाँ जलाए? काफ़ी सोचने के बाद नानी ने, जहाँ पशुओं को बाँधा जाता था, वहाँ आग जलाने के लिए चुना। लेकिन यह क्या? वहाँ तो छप्पर भी नहीं है, अब आग कैसे जलाएँ? नानी ने प्लास्टिक की तिरपाल से छप्पर बनाकर आग जला दी। अब हम सभी भाई-बहन बहुत ही ख़ुश थे। हम सभी ख़ुशी-ख़ुशी आग के चारों और अपने-अपने हाथ निकाल कर बैठ गए। हमें काफ़ी मज़ा आ रहा था। हम सभी चहक-चहक कर एक-दूसरे से बातें करते हुए मौसम का आनंद ले रहे थे।
उस आग के पास थोड़ी सी ऊँची एक जगह थी। जो दो दीवारों के बीच में थी और मैं उस ऊँचे स्थान पर बैठी आग को सेक रही थी। मैं अपनी छोटी बहन को सबसे ज़्यादा प्यार करती थी। हम सभी आग सेकने का आनंद ले ही रहे थे कि अचानक से एक घटना घटी और हमारी सारी ख़ुशी कुछ ही पल में क्षणभंगुर हो गई। हम सभी एक खेल खेल रहे थे, जिसमें शर्त के अनुसार जिसे मैं सबसे ज़्यादा प्यार करती थी, उसे ऊँचे स्थान पर बैठना था। लेकिन जगह बदलते समय दोनों दीवारों से धक्का लगने के कारण मेरी छोटी बहन के दोनों हाथ आग के बीच में पड़ गए और जल गए। वह चिल्लाए जा रही थी और हम सब मार खाने के डर से सहमे हुए नानी के पास गए। जल्दी-जल्दी उसे मामा जी डॉक्टर के पास ले गए और हम सभी भाई-बहन कंबल ओढ़ कर लेटे रो रहे थे। हम काफ़ी डरे हुए थे; एक तो मार खाने का डर और दूसरी तरफ छोटी बहन के हाथ अगर कट गए तो क्या होगा? यह सोचकर हम लोग रोए जा रहे थे, पर जब छोटी बहन डॉक्टर के पास से आई तो वह ठीक थी। डॉक्टर ने उसे मरहम लगाने के लिए दी थी और बोला था इसको लगाने से वह धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी।
हम मार से बच गए नानी ने हमें डाँट कर छोड़ दिया। हम सभी भाई बहनों ने प्रतिज्ञा की कि अब कभी ऐसी ज़िद नहीं करेंगे और ऐसा खेल नहीं खेलेंगे। उस अतीत को बीते काफ़ी समय हो गया, पर जब भी उस पल को याद करते हैं तो, चेहरे पर हँसी आ जाती है।
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