सरस्वती - वन्दना

01-06-2021

सरस्वती - वन्दना

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

वंदन है तुझको शारदे,
वंदन है तुझको शारदे,
 
नीरस कविता- सलिला में,
भाव रूप तू रस भर दे।
विकृत मन के तारों को,
नव रागों से झंकृत कर दे॥
 
वंदन है तुझको शारदे,
वंदन है तुझको शारदे,
 
निर्लिप्त, अधूरे भावों को,
नूतन कमलों - सा पुष्पित कर दे।
निष्प्राण गढ़े किंचित शब्दों को,
काव्य- सुधा से सिंचित कर दे॥
 
वंदन है तुझको शारदे,
वंदन है तुझको शारदे॥

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