संकेतों की भाषा

16-08-2008

संकेतों की भाषा

लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

वे चार पाँच के समूह में
बातें करते हैं
संकेतों की भाषा में
देखते बनती हैं
उनके हाथों और उँगलियों की 
संचालन की मुद्राएँ और उनकी गति
वे डूबे हैं बहुत गहरे 
अपने वार्तालाप में
तरह तरह के भाव
उभरते हैं उनके चेहरों पर
उनकी इस बातचीत का दृश्य
बनाता है अजीब कौतूहल का वातावरण
विस्मित हो देखते हैं आसपास के लोग 
फिर आपस में फुसफुसाते हैं
दयाभाव से लेकर उपहास तक के 
मिश्रित भावों से
‘गूँगे हैं’ .............फुसफुसाता है कोई
उन्हें दिखता है सिर्फ गूँगापन
वे सुन ही नहीं पाते
कि इस वार्तालाप में 
ज़िन्दगी कैसे चहक चहक कर बोल रही है!

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