समकालीन महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में शारीरिक शोषण की समस्या

17-03-2016

समकालीन महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में शारीरिक शोषण की समस्या

डॉ. राजकुमारी शर्मा

भारतीय समाज में नारी का शोषण आज से ही नहीं प्राचीनकाल से चला आ रहा है। नारी केवल उपभोग की वस्तु रह गई है। समाज में पुरुष वर्ग ने नारी को मात्र वस्तु रूप में ही उपभोग किया है। नारी का शोषण उसके जन्म के तदोपरांत ही आरम्भ हो जाता है, जब माता-पिता एवं घर के अन्य सदस्य माथे पर त्योरियाँ डालकर नवजात लड़की का स्वागत अनमने ढंग से करते हैं। नारी का शोषण कभी तो विवाह के दौरान किया जाता है तो कभी बहू के रूप में तो कभी अन्य संबंधों के आधार पर उसका शोषण होता है। पुरुष एवं नारी के शारीरिक संबंधों को लेकर भी नारी का शोषण अपेक्षाकृत अधिक हो गया है।

समकालीन महिला उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों में इसी स्थिति को दर्शाया है। कुसुम अंसल के उपन्यास "अपनी अपनी यात्रा" की नायिका मिन्ना इस स्थिति की शिकार है। दहेज के कारण उस पर अत्याचार, आरोप-प्रत्यारोप लगाया जाता है। सास-बहू के गुणों को ना देखकर उसमें स्थित अवगुणों की चर्चा करती रहती है। दहेज ना देने के कारण उसमें अनेक दोष गिनाए जाते हैं - मिन्ना मायके वापस लौट आई, कारण भी अजीब थे - यही कि दहेज की किसी एक साड़ी पर ट्रंक में लगी जंग का कोई निशान था। मिसेज बत्रा ने फ़ौरन माँ को फ़ोन किया कि आकर साड़ी ले जाओ। माँ उसी समय वहाँ गई। दाग लगी साड़ी के बदले नई साड़ी दी और लौटने लगी तो उन्हें कहा गया कि मिन्ना को भी साथ लेती जाओ। कसूर बहुत से गिनाए- यह ठीक से अंग्रेज़ी नहीं बोल पाती है। उदेश उसे पार्टी में नहीं ले जा सकता, क्योंकि वह अंग्रेज़ी डाँस नहीं कर सकती। उदेश के दोस्तों के साथ खुलकर बात करने की तमीज़ नहीं थी उसे और "बच्चे के जन्म पर देने लेने का बड़ा सवाल सामने था।"1 परिणाम यह हुआ "मुझे यकीन है कि उदेश मिन्ना को मारता-पीटता भी है। कोई कह रहा था कि मिन्ना की बाँहों पर सिगरेट से जलाने का निशान है।"2

मिन्ना रोज की असहनीय पीड़ा से पीड़ित अधिक समय तक ज़िन्दा ना रह सकी। मिन्ना गर्भवती थी। पति और सास की रात-दिन की झायें-झावें से परेशान प्रसव के समय मर जाती है। कुसुम अंसल ने अपने उपन्यास में नारी के शोषण के बारे में कहा है कि नारी शारीरिक एवं मानसिक रूप से दोनों रूपों में शोषण सहन करती है। नारी का हर प्रकार से शोषण किया जाता है। उसमें केवल कमियाँ ही देखी जाती है। पुरुष समाज नारी को दबाकर रखना चाहता है। उसे पर उठाने या पंख फैलाने की अनुमति नहीं है। उपन्यास की नायिका मिन्ना की भी यह स्थिति है। वह पति एवं घरवालों की ज़्यादतियाँ बर्दाश्त करती है। किसी के भी सामने कुछ नहीं बोलती। उनके अत्याचारों को चुपचाप सहन करती है जिसके कारण उसकी मृत्यु हो जाती है। यहाँ भी इस संदर्भ में पुरुष द्वारा नारी के शरीर और मस्तिष्क के शोषण की समस्या को प्रस्तुत किया गया है।

नारी हो या पुरुष, अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दोनों एक-दूसरे का शोषण करते हैं। लेखिका मृदुला गर्ग ने उपन्यास "चितकोबरा" में पुरुष के शोषण की व्यथा को दृष्टिगत किया है। "चितकोबरा" की नायिका मनु विवाहित है, पति के होते हुए भी उसका ध्यान किसी अन्य पुरुष की ओर गया। कारण था पति का उस पर ध्यान ना देना। भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाहित नारी का किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध ठीक नहीं है। नायिका मनु रिचर्ड के साथ शारीरिक संबंध भी जोड़ती है। उपन्यास की नायिका मनु कहती है- "शरीर ही संगीत है, शरीर ही नृत्य। शरीर ही ईश्वर है, शरीर ही आराधना। शरीर ही चेतना है, शरीर ही विस्फोट, शरीर के बंधक रहने पर मन-मस्तिष्क नगण्य है। पर शरीर लालची नहीं है। अपना प्राप्य पा लेने पर शांत हो जाता है।"3 लेखिका मृदुला गर्ग ने उपन्यास में दांपत्य संबंधों में उत्पन्न अन्य पर-पुरुष से शारीरिक संबंधों के शोषण से ग्रस्त नारी की स्थिति को सामने रखा है। शादीशुदा होते हुए भी वह अपनी काम-तृप्ति की पूर्ति के लिए अन्य पुरुष के साथ संबंध जोड़ती है। लेखिका ने केवल नारी की शोषण ग्रस्त स्थिति को ही नहीं उभारा बल्कि पुरुष भी शारीरिक शोषण से ग्रस्त होता है। पत्नी का प्रेम ना मिलने के कारण।

उपन्यास "अनित्य" में मृदुला गर्ग ने नारी एवं पुरुष के शारीरिक संबंधों में आए स्वार्थ को उठाया है। उपन्यास की नायिका संगीता अविवाहित है। वह नायक अविजित से प्रेम करती है। अविजित विवाहित है। अविजित संगीता के प्रेम-आकर्षण में जकड़ा हुआ है। वह संगीता से दूर नहीं रह सकता। संगीता और अविजित में शारीरिक संबंध है। संगीता विवाह करना चाहती है। अविजित संगीता की शादी के पक्ष में नहीं है। संगीता अविजित का विरोध करती है। अविजित आवेश में आ जाता है और कहता है- "मैं कभी सोच भी नहीं सकता था, तुम बिना प्यार किए, सिर्फ़ पैसों के लिए शादी कर सकती हो।"4 इस बात पर नायिका संगीता अविजित को उत्तर देती हुई कहती है- "आप तो मेरी माँ को जानते थे। उन्होंने हमेशा यही सीख दी किसी मर्द से प्यार की ख़ातिर शादी मत करो। प्यार लो, दो कभी नहीं।"5 संगीता की इन बातों को सुन अविजित आश्चर्य में रह जाता है। नायक अविजित विवाहित है पर दांपत्य जीवन से ख़ुश नहीं है, समस्या पत्नी का बीमार रहना। इस कारण वह संगीता की ओर आकर्षित हो जाता है। उससे शारीरिक संबंध बना लेता है, लेकिन जब संगीता का विवाह हो जाता है तो वह दुखी हो जाता है। संगीता विवाह उपरांत पति से शारीरिक संबंधों में असफलता प्राप्त कर अन्य पुरुष की ओर आकर्षित हो शारीरिक संबंध बना लेती है।

"अब न बनेगी देहरी" उपन्यास में लेखिका पद्मा सचदेव ने शारीरिक शोषण की समस्या को चित्रित किया है। नायिका रेवती का विवाह सुंदर नायक पुरुष से हो जाता है। विवाह के बाद ही सुंदर की अकस्मात मृत्यु हो जाती है। नायिका रेवती को अपना जीवन अंधकारमय लगता है। वह मृत्यु का आवरण ओढ़ने के लिए तत्पर होती है, तो मंदिर का पुजारी गिरिबाबा उसे आत्महत्या करने से रोक देता है। रेवती का आकर्षण पुजारी गिरिबाबा की ओर हो जाता है। रेवती पुजारी गिरिबाबा की ओर आकर्षित हो अपना सब कुछ समर्पित कर देती है। यहीं से शारीरिक शोषण का आरंभ हो जाता है। नायिका रेवती नायक गिरिबाबा से शारीरिक संबंध बना लेने के बाद गर्भवती हो जाती है। गिरिबाबा रेवती को बहुत समझाते हैं, बच्चा गिरा दे। रेवती गिरिबाबा की बात से सहमत नहीं है। गिरिबाबा इसे कलंक मानते हैं, जबकि रेवती उसे अपना सौभाग्य मानते हुए कहती है- "इसे आप कलंक क्यों मानते हैं महाराज? अगर कलंक ही है तो मेरा है। आपको कोई दोषी न ठहराएगा। मैं अपने बच्चे का ख़्याल ख़ुद रख सकती हूँ।"6 किसी भी नारी का शादी से पहले गर्भवती होना समाज एवं परिवार में कलंक के रूप में देखा जाता है। उसे अपराधी माना जाता है। सब उसे हेय की दृष्टि से देखते हैं। नायिका रेवती अपने इस कर्म को सौभाग्य मानकर, बच्चे को पैदा करने तथा उसकी जिम्मेवारी उठाने के लिए तत्पर होती है। नायक गिरिबाबा अपने आपको दोषी मानते हैं। नायिका रेवती गिरिबाबा को समझाते हुए कहती है- "कैसा दोष महाराज, सृष्टि बनाने के लिए आज तक किसी ने भगवान को दोषी ठहराया है।"7 पहले नारी अपने इस तरह के संबंध को बनाने में ग्लानि महसूस करती थीं, पर उपन्यास में रेवती इसे अपराध ना मानकर सुखद प्रेम की परम अनुभूति मानती है। पुरुष इस शारीरिक संबंध को "अनुचित" मानता है तो नारी हँसकर कहती है कि "वाह महाराज! आप तो कितना भागे। मैंने ही आपको भागने न दिया।"8 नायक गिरिबाबा आरम्भ से ही रेवती के रूप-सौंदर्य पर आकर्षित थे। शारीरिक संबंध की पुष्टि हो जाने पर उन्हें आत्मग्लानि महसूस होती है। उपन्यास में लेखिका पद्मा सचदेव ने नारी की स्थिति को चित्रित किया है। नारी का शोषण होते हुए भी वह शोषण न मानकर उसे परम सुख की अनुभूति मानती है।

"आवाँ" उपन्यास में लेखिका चित्रा मुद्गल ने नारी शोषण एवं दुर्दशा का वर्णन किया है। यह उपन्यास वेश्याओं के जीवन पर आधारित है। पुरुष वेश्याओं को केवल शारीरिक सुख के रूप में साधन मानते हैं। नायिका अनीसा गोदेरेज सोप की फैक्टरी में काम करती है। फैक्टरी में किरपू दुसाध अनीसा के साथ ज़बरदस्ती संभोग करता है। साथ ही पेट में पल रहे जीव की भी हत्या कर देता है। जिससे अनीसा की भी मृत्यु हो जाती है। "और यह हत्यारा था कामगार लाघाड़ी का सदस्य किरपू दुसाथ, जिसकी कठौते-सी बीवी है और छाती पर सिल-सी बैठी तीन जवान हो रही बेटियाँ।"9

यहाँ लेखिका ने वेश्याओं की चर्चा की है। स्त्री का अपनी मर्जी से संभोग करना अलग बात है और ज़ोर-ज़बरदस्ती करके अत्याचार करना अलग बात है। समाज के हर वर्ग में नारी का शोषण हो रहा है। पुरुष समाज में नारी का उपभोग या तो ज़बरदस्ती, मजबूरी या पैसों के ज़ोर पर करना चाहता है। उसे केवल बच्चे पैदा करने के लिए नारी चाहिए, चाहे उधार की कोख ही क्यों ना हो। नारी को अपना जीवन जीने के लिए बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। समाज में रहने के लिए। "आवाँ" उपन्यास में लेखिका ने दूसरी नायिका नमिता के दुःखद जीवन की गाथा को भी चित्रित किया है।

नमिता अपने परिवार का भरण-पोषण के लिए समाज एवं परिवार में अपमान भी सहती है। 10 साल की आयु में नमिता के साथ उसका रिश्तेदार बहनोई भी बलात्कार कर, मौसा भी अपने दैहिक सुख के लिए लगातार उसके साथ संभोग करता है। नमिता के साथ कम आयु में ही बलात्कार की घटना हो जाती है जिससे उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उपन्यास में नायक पावर जो राजनीति का हितैषी है, सबको अपनी ओर आकृष्ट कर हरेक से फ़ायदा उठाने की भरसक कोशिश में लगा रहता है। पावर अपने ही सहमित्रों के साथ मिलकर नारी की निंदा कर आनंद लेता है। पावर निर्मलाबाई की ब्याजनिंदा करते हुए कहता है-

यह विमला बेन की ही कूवत है। भरपूर यौनानंद भोगने के बावजूद वे आजीवन कुँवारी रहीं और भविष्य में भी रहेंगी। हो सकता है, इस खेल में उन्हें कई जोखिम उठाने पड़े हों। सुना है बूढ़ी शेरनी को बुढ़ापे में भी यौनानंद से परहेज़ नहीं। उनके बंगले में उनकी सेवा-टहल को गोद ली श्रमिक कुँआरियों का जमघट लगा रहता है।"10 राजनीति में प्रत्येक व्यक्ति अपने कारनामों के लिए चर्चित होता है। पावर बिमला की उपेक्षा कर उसके चरित्र पर अंगुली उठा रहा है। जवान हो या बूढ़ी भोगने की प्रक्रिया में ज़रा-सा भी ऐतराज़ नहीं है। कर्मचारी वर्ग कम आयु की लड़कियों के साथ संभोग कर उनका शोषण करते हैं।

नारी-स्वातंत्र्य की बात एवं चर्चा सभी करते हैं, पर यह स्वातंत्र्य संभव नहीं होता। नारी-शोषण चलता ही रहता है। प्रभा खेतान ने अपने उपन्यास "छिन्नमस्ता" में नारी की शोषित स्थिति का चित्रण किया है। जो जन्म से ही शोषित तथा उत्पीड़ित रही है- पहले परिवार के सामने, दूसरे समाज की टूटी-फूटी परंपराओं और पुरुष की शारीरिक भूख के आगे, बचपन से ही नायिका प्रिया को माँ-बाप का प्यार कभी नसीब नहीं होता। अपने ही घर में वह यौन-संबंध की शिकार होती है। पहले अपने ही बड़े भाई द्वारा तथा बाद में कॉलेज में शिक्षक द्वारा उसका शारीरिक शोषण होता है। विवाह होने के बाद भी प्रिया की वही हालत में कोई सुधार नहीं होता है, जो विवाह से पहले थी। प्रिया का पति भी उसे शारीरिक रूप में ही उपभोग करता है, जिससे उसे नारी होने से चिढ़ हो जाती है। प्रिया कहती है कि "मुझे प्रेम, सेक्स, विवाह ये सारे सदियों पुराने घिसे हुए शब्द लगने लगे थे। नहीं, शब्द नहीं, मांस के ताज़ा टुकड़े। लहू टपकते हुए इन शब्दों के पीछे की दीवानगी और आदिकाल से चली आ रही परंपराओं का चेहरा सिर्फ़ औरत के आँसुओं से तरबतर है- नहीं मैं औरत नहीं बनना चाहती थी।"11 आज के समय में किसी भी रिश्ते एवं रिश्तेदारों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। नारी ना तो घर में सुरक्षित है और न ही बाहर। ऐसी स्थिति में नारी किस पर यकीन करे समझ नहीं आता। शादी के बाद भी प्रिया की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। पहले दिन-रात भाई की काम-कुंठा की शिकार बनती रही बाद में पति के हाथों की कठपुतली बनकर रह गई। पति नरेंद्र भी प्रिया को केवल उपभोग की वस्तु मानकर उसका भोग करता रहा। प्रिया पति नरेंद्र की किसी बात को ना नहीं किया करती थी। बचपन से ही दाई माँ ने असुरक्षा का भाव उसके मन ऐसा बिठाया था जिससे वह चाहकर भी बाहर नहीं आ पा रही थी। बचपन की वक कुंठित यादें उसकी स्मृति में डंक मार बैठ गई थी। प्रिया और नरेंद्र दोनों अलग-अलग विचारधाराओं से युक्त थे। पति-पत्नी दोनों कभी एक साथ बैठते तो बातें कम लड़ाई ज़्यादा। प्रिया पति से अलग होकर भी अलग नहीं होना चाहती थी कारण शादी के वक़्त घर परिवार छुट गया। प्रिया का परिवार वालों से छुट जाने का ग़म नहीं था वह तो उस नरक में दोबारा कभी भी नहीं आना चाहती थी। पति नरेंद्र का घर ही प्रिया का अंतिम ठिकाना था। नरेंद्र की जली-कटी सुनने के बाद भी वह घर से बाहर नहीं जाना चाहती थी। नरेंद्र के अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। घर की पार्टी हो या ऑफ़िस की पार्टी नरेंद्र प्रिया की सब जगह तिरस्कार, अपमान करता रहता है। नरेंद्र की सुबह रोज़ प्रिया को गाली-गलौच देने से शुरू होती है। प्रिया नरेंद्र की इन हरकतों से बेहद परेशान है। प्रिया नरेंद्र की इन हरकतों से बेहद परेशान है। प्रिया कहती है "हे मेरे राम! कोई इतना भी नीचे गिर सकता है? इतना नीचे? कुएँ की भी कोई ज़मीन होती है.... पर नरेंद्र की नीचता अंतहीन है, बिना किसी ज़मीन के। नहीं, मैं और कुछ नहीं सोच पा रही थी। गेस्टरूम का दरवाज़ा बंद करके पलंग पर निढाल हो गई और रूलाई.... आँसू.... हिचकियाँ...... और इन सबसे परे, एक निहत्थी असहाय लड़ाई लड़ने का बोध। मैं कैसे लड़ सकूँगी? हे मेरे भगवान, मैं कैसे निपट सकूँगी। इस जानवर से? कब इन समझौतों का अंत होगा?"12 प्रिया नरेंद्र के अभद्र व्यवहार से दुःखी थी वह नरेंद्र के जुड़े हुए बंधनों को तोड़ना-छोड़ना चाहती थी। वह नरेंद्र के अत्याचारों से मुक्त होना चाहती थी। लेखिका प्रभा खेतान ने नायिका के मामयम से नारी पर होने वाले शारीरिक एवं मानसिक शोषण एवं अत्याचार का चित्राण किया है।

"शाल्मली" उपन्यास में लेखिका नासिरा शर्मा ने नारी के शोषण की बात कही है। नायिका शाल्मली अपने शादीशुदा जीवन से संतुष्ट नहीं है। कारण पति का हर वक्त उसे नीचा दिखाना, उपहास उड़ाना आदि। शाल्मली पति की इन ओछी हरकतों से परेशान है। कुछ दिनों के लिए गाँव से आई मा ;सासं माँद्ध भी अपने बेटे के व्यवहार को देख नाखुश है। नायक की माँ शाल्मली से कहती है- "मैं इन दिनों तेरे पास रहकर जान पाई बहूरी। औरत जन्मजली कहीं स्वतंत्र नहीं। कहीं खूँटे से तंग बाँधी तो कहीं उसके गले में ब!धी रस्सी थोड़ी लंबी या अधिक लंबी।"13 युग बदले, स्थितियाँ-परिस्थितियाँ बदली पर नारी की दशा एवं दिशा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। शाल्मली पीढ़ी-लिखी आधुनिक युवती है। समयानुसार पति से अपने अपमान का विरोध भी करती है- "जब औरतें अनगढ़, अनपढ़ मिलती हैं, तो पुरुष उनसे कुढ़े-। बे बाहर की तरफ भागते हैं और जब शिक्षित चुस्त-औरतें पत्नी के रूप में मिल जाती हैं तो उनसे घबराहट का अहसास होता है और भयभीत होकर तीसरी किस्म की औरतों की तरफ भागते हैं। क्या वे स्वयं जानते हैं कि उन्हें कैसी औरतें कैसी पत्नियाँ चाहिए।"14 पुरुष स्वयं भी जानने में असमर्थ है कि उसे कैसी पत्नी चाहिए। पुरुष को यही नहीं पता होता कि किस प्रकार की नारी के साथ उनका निर्वाह हो सकता है। वह तो केवल दैहिक सुख एवं आकर्षण के कारण ही सुंदर नारी का वरण करना चाहते हैं। वह चाहे जैसी भी हो।

उपन्यास "अंतर्वशी" में लेखिका उषा प्रियवंदा ने पति-पत्नी के संबंधों में शारीरिक शोषण की पीड़ा का चित्रण किया है। वाना और शिवेश के वैवाहिक संबंधों में रिक्तता आ जाती है। वाना कहती है नारी केवल संतान उत्पन्न करने का एक मात्र साधन समझी जाती है। उसकी इच्छा का कोई मोल नहीं है। जब चाहा उसका उपभोग किया ना मन किया तो अपमान कर अग्नि में झोंक दिया। वाना अपनी सहमित्र क्रिस्तीन से अपने दुःखों का साझा करती है। क्रिस्तीन वाना को दिलासा देते हुए कहती है कि- "मुझसे कहो न, वाना। क्या दुःख तुम्हें साल रहा है।"15 यहाँ वाना क्रिस्तीन को अपने और शिवेश के बारे में बताती है कि उसने कितनी यातनाए! सही है, यह दुख और नहीं झेला जाता। वाना शारीरिक एवं मानसिक रूप से पीड़ित है।

समकालीन महिला उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों में जहाँ नारी-जीवन को लेकर उनकी शारीरिक एवं मानसिक व्यथा का ब्यौरा दिया है, वहीं कुछ उपन्यासों में नारी की जगह पुरुष की स्थिति को भी चित्रित किया है।

उपन्यास "शेष-यात्रा" में लेखिका उषा प्रियंवदा ने नायक प्रणव की मनोदशा का चित्रण किया है। प्रणव अपनी पत्नी अनु को बहुत प्रेम करता है। अनु भी प्रणव के प्रति समर्पित है। प्रणव का काफ़ी लंबे समय से अस्वस्थ रहना उसके दुःख का कारण बन गया है। नायिका अनु अन्य पुरुष के साथ शारीरिक संबंध स्थापित कर लेती है। प्रणव कहता है "बाहर रात खींचकर लंबी हो रही है। पलंग पर पड़ा, रोग से टूटा, प्रणव, पास बैठी, भूरी-पूरी अनु। यह क्षण अपने हैं। उन दोनों के जो उन्होंने साथ-साथ जिए थे-प्यार-मनुहार, सुख-तुष्टि, दुःख-यातना, कर्तव्य-बेवफ़ाई उस ज़िंदगी के जो उन्होंने नए संबंधों में उसे रगड़-रगड़कर लगातार धोया है, फिर भी कुछ आकृतियों, कुछ रूप, कुछ रंग, उस बुनावट में भी बचे हुए हैं।"16 नायक प्रणव अनु के साथ बिताये दिनों के सुनहरे पलों को याद कर उदास हो रहा था। पत्नी अनु की इच्छाओं को पूरा ना करने के लिए अपने आपको दोषी ठहरा रहा था। लेखिका उषा प्रियवंदा ने नायक प्रणव को दयनीयता का वर्णन किया है।

उपन्यास "सेज पर संस्कृति में नायिका संघमित्रा नौकरी की तलाश में दर-बदर-दर भटक रही थी। एक दिन नौकरी ना मिलने के कारण वह किसी कम्पनी में बिना एप्वाइमेंट के ही चली जाती है।

संघमित्रा अपना आत्मवृत्त "बायोडाटा" दिखाकर कहती है कि उसे सभी भाषाओं का ज्ञान है, और वह सभी भाषाओं में प्रोग्रामिंग कर सकती है। कम्पनी प्रोग्रामिंग के मालिक ने उसके हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा- "आपकी नौकरी पक्की पर..... यह बताइए कि प्रोग्रामिंग के अलावा क्या कर सकती हैं।"17 इस उपन्यास प्रोग्रामिंग में कम्पनी का मालिक अपनी काम-वासना की पूर्ति के तहत संघमित्रा के हाथ में फ़ाईल देने के बहाने से उसके शरीर को छूना चाहता है।

निष्कर्ष कहा जा सकता है कि समकालीन महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में शारीरिक शोषण की समस्या को अनेक रूपों में चित्रित किया है। महिला उपन्यासकारों ने पुरुष और नारी दोनों के शोषण की व्यथा को उजागर किया गया है। नारी के शोषण की करुण पीड़ा को अनेक आयामों में स्पष्ट किया है- दहेज, दांपत्य संबंधों में तनाव, कड़वाहट, अकेलेपन के कारण पर-पुरुष के साथ संबंधों में शोषण की पीड़ा तथा पति की वेदना का भी मर्मस्पर्शीय वर्णन किया है।

संदर्भ

1. अपनी-अपनी यात्रा - कुसुम अंसल, पृ.-123
2. वही, पृ.-123
3. चितकोबरा- मृदुला गर्ग, पृ.-189
4. अनित्य- मृदुला गर्ग, पृ.-197
5. वही, पृ.-197
6. अब न बनेगी देहरी, पद्मा सचदेव, पृ.-176
7. अब न बनेगी देहरी, पद्मा सचदेव, पृ.-176
8. वही, पृ.-173
9. आवाँ- चित्रा मुद्गल, पृ.-354
10. आवाँ- चित्रा मुद्गल, पृ.263
11. छिन्नमस्ता- प्रभा खेतान, पृ.-124
12. छिन्नमस्ता- प्रभा खेतान, पृ.-166
13. शाल्मली- नासिरा शर्मा, पृ.-94
14. शाल्मली- नासिरा शर्मा, पृ.-154
15. अंतर्वशी- उषा प्रियवंदा-पृ.-99
16. शेष यात्र- उषा प्रियंवदा, पृ.-118
17. सेज पर संस्कृत-मुध कॉकरियाँ, पृ.-150

डॉ. राजकुमारी
आरदजेड़ 505ए/92
राजनगर पालम कॉलोनी
नई दिल्ली-45

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