समझ गए हम
प्रभुदयाल श्रीवास्तवपहली कक्षा पास हो गए,
कक्षा दो में पहुँचे हम।
पढ़ा लिखा तो बहुत- बहुत था,
फिर भी नंबर आए कम।
ख़ुशी पास होने की तो थी,
दुख था नंबर कम आए।
अपने संग साथियों में हम,
कम नंबर पर शर्माए।
न जाने क्या हुआ, न जाने,
किसने मुझ पर ढाए सितम।
कारण खोजा तो अपने ही,
भीतर कमियाँ ढेर मिलीं।
कभी नियम से हर दिन हमने,
पाठ्य पुस्तकें पढ़ी नहीं।
बिल्कुल सिर चढ़ आई परीक्षा,
तभी लगाया पूरा दम।
रात-रात भर जगे, सुबह से,
तन मन में आलस आया।
और परीक्षा में अधकचरा,
याद रहा जो,लिख पाया।
समझ गए हम "हर दिन पढ़ना"
पढ़ने का है यही नियम।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- किशोर साहित्य नाटक
- बाल साहित्य कविता
-
- अंगद जैसा
- अच्छे दिन
- अब मत चला कुल्हाड़ी
- अम्मा को अब भी है याद
- अम्मू भाई
- आई कुल्फी
- आदत ज़रा सुधारो ना
- आधी रात बीत गई
- एक टमाटर
- औंदू बोला
- करतूत राम की
- कुत्ते और गीदड़
- कूकर माने कुत्ता
- गौरैया तू नाच दिखा
- चलना है अबकी बेर तुम्हें
- चलो पिताजी गाँव चलें हम
- चाचा कहते
- जन मन गण का गान
- जन्म दिवस पर
- जब नाना ने रटवाया था
- धूप उड़ गई
- नन्ही-नन्ही बूँदें
- पिकनिक
- पूछ रही क्यों बिटिया रूठी
- बादल भैया ता-ता थैया
- बिल्ली
- बिल्ली की दुआएँ
- बेटी
- भैंस मिली छिंदवाड़े में
- भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
- भैयाजी को अच्छी लगती
- मान लिया लोहा सूरज ने
- मेंढ़क दफ्तर कैसे जाए
- मेरी दीदी
- रोटी कहाँ छुपाई
- व्यस्त बहुत हैं दादीजी
- सड़क बना दो अंकलजी
- हुई पेंसिल दीदी ग़ुस्सा
- बाल साहित्य कहानी
- किशोर साहित्य कविता
- किशोर साहित्य कहानी
- बाल साहित्य नाटक
- कविता
- लघुकथा
- आप-बीती
- विडियो
-
- ऑडियो
-