समानांतर रेखाएँ

15-07-2021

समानांतर रेखाएँ

दीपक रौनीयार (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मुझे पसंद हैं समानांतर रेखाएँ
दो रेखाएँ जो कभी मिलती नहीं,
पर साथ साथ चलती हैं
दूर तक, अनन्त तक।
 
ये मिलती नहीं, 
इसलिए ये उलझती नहीं
उलझ के सुलझना, 
सुलझ के फिर उलझना इनको आता नहीं,
यह तो बस जानती हैं साथ चलना
दूर तक, अनन्त तक।
 
मिलने की ख़ुशी और 
बिछड़ने का ग़म इनको छूता नहीं
अनजान मोड़ पर साथ छूट जाने का डर 
इनको सताता नहीं,
इन्हें तो बस आता है साथ निभाना
दूर तक, अनन्त तक।
 
वो चिंतित हैं कि यह कभी मिलती नहीं
किन्तु जहाँ से मैं देखता हूँ, 
यह कभी बिछड़ती नहीं,
ये तो साथ साथ रहती हैं
दूर तक, अनन्त तक।
 
दुःखी हूँ कि हाथ पकड़ कर 
यह चल सकती नहीं
पर यह भी तो सच है कि 
एक दूसरे के बिना यह रह सकती नहीं,
मुझे पसंद हैं समानांतर रेखाएँ
दो रेखाएँ जो साथ साथ 
चलती हैं मुस्कराते हुए
दूर तक, अनन्त तक।

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