तेरी उचाई देख के, काँपने लगे हम
अपना क़द फिर से, नापने लगे हम
हम थे बेबस यही, हमको रहा मलाल
आइने को बेवजह, ढाँपने लगे हम
बाज़ार है तो बिकेगा, ईमान हो या वजूद
सहूलियत की ख़बर, छापने लगे हम
दे कोई किसी को, मंज़िल का क्यूँ पता
थोड़ा सा अलाव वही, तापने लगे हम
वो अच्छे दिनों की, माला सा जपा करता
आसन्न ख़तरों को, भाँपने लगे हम