सहरा कहीं हयात कहीं दाम आ पड़ा 

01-04-2021

सहरा कहीं हयात कहीं दाम आ पड़ा 

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

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सहरा कहीं हयात कहीं दाम1 आ पड़ा 
हर रास्ते में एक नया रास्ता पड़ा
 
कुछ इसलिए थकान मुझे बेकरां2 हुई
ख़ुद तिश्नगी में मुझको कुआं खोदना पड़ा 
 
जिनको नहीं था इल्म मिरी दास्तान का 
लेना उन्हीं से हाय मुझे मशवरा पड़ा
 
ऐसा भी क्या सवाल भला मैंने कर दिया 
सुनकर तिरा जवाब मुझे सोचना पड़ा
 
कोशिश रही गुलाब ही देता चलूं उसे
दुनिया में जिस किसी से मेरा वास्ता पड़ा
 

1. दाम=फंदा

2. बेकरां=असीमित

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