उन के गाल ख़रबूज़े होंठ अँगूरी नयन मृग से करते शिकार पर ख़ुद शिकार भी कैसा वक़्त आया ये सभ्य चेहरे गोरांग लिपे पुते सुबह सात बजे बने ठने मगर सब के सब दिन भर अनमने क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने।