साड़ी

राजीव कुमार (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

अपनी माँ को एक साड़ी भी न दे पाने के मलाल के कारण आज रमेश शहर के सबसे बड़ी साड़ी की दुकान में था और साड़ी के रंग और डिज़ाईन के चुनाव को लेकर उधेड़-बुन की स्थिति में था। दुाकनदार ने प्रिंटेड साड़ी, ज़री वाली साड़ी की एक दर्जन वेरायटी की साड़ियाँ रमेश के समाने रखकर कहा, "इससे ज़्यादा आकर्षक और मनमोहर साड़ियाँ आपको इस शहर की किसी भी दुकान में नहीं मिलेंगी।" 

रमेश की आँखें लगातार डिस्पले में लगी साड़ियों का मुआयना कर रहीं थीं। दुकानदार के साथ-साथ उनका स्टाफ़ भी बड़ी उत्सुकता से रमेश की तरफ़ देख रहे थे क्योंकि एक ही ग्राहक के पीछे एक घंटा दिया गया था।

"आप इस साड़ी की क़ीमत बता दें और अगर गुंजाइश हो तो क़ीमत थोड़ी कम लगा दें," हरी ज़रीदार साड़ी हाथ में लेकर रमेश ने कहा तो दुकानदार के साथ-साथ स्टॉफ़ ने भी चैन की साँस ली।

साड़ी ख़रीदकर रमेश दुकान की सीढ़ी तक ही आया होगा कि वापस लौटकर दुकानदार से कहा, "वो गुलाबी वाली साड़ी अत्यधिक सुन्दर है।" रमेश को स्मरण हो आया कि उसकी बड़ी माँ ने गुलाबी रंग की साड़ी के कारण ही माँ को नीचा दिखाया था।

गुलाबी रंग की साड़ी लेकर रमेश सड़क तक आकर फिर लौटकर दुकान गया और कहा, "क्षमा करें, लाल ज़रीदार काश्मीरी साड़ी मेरी अंतिम पसंद है, और माँ की भी।"

" सबको रतौंधी होती है, इनको दिनौंधी हो गयी है।" स्टाफ़ के द्वारा फुसफसा कर किए गए कमेन्ट ने रमेश को थोड़ा क्रोधित किया मगर उसने नज़रअंदाज़ कर दिया।

दो दिन बाद रमेश के हाथ में लाल साड़ी देखकर दुकानदार ने चश्मा उतारकर अपना सिर पीटा तो स्टाफ़ ने ’नो एक्सचेंज, नो रिटर्न’ के टैग वाला बोर्ड रमेश की आँखों के सामने लहरा दिया।

"भले ही इस साड़ी को बदलकर दूसरी साड़ी न दें या इसके पैसे वापस न करें, लेकिन अब इस साड़ी की आवश्यकता घर में नहीं है।"

अबकी बार दुकानदार ने ’नो एक्सचेंज, नो रिटर्न’ वाला बोर्ड रमेश के सामने लहराया तो रमेश की आँखों से कुछ अश्रु-बूँद लुढ़क गए, उसने दबी हुई आवाज़ में कहा, "मेरे पिताजी का स्वर्गवास हो गया है।" इससे पहले कि दुकानदार उसको रोक पाता, रमेश दौड़कर सड़क तक आ गया। 

अगले दिन दुकानदार ने रमेश के घर तीन सफ़ेद साड़ियाँ भिजवा दीं।

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