साम्राज्य एक दिन का

20-04-2014

साम्राज्य एक दिन का

भारती पंडित

बिट्टू को समझ में ही नहीं आ रहा था कि आज दादी से लेकर चाची, बुआ सबको हो क्या गया है। रोज़ तो उसे खूब भाव मिलता था, उसकी मान-मनुहार की जाती थी, उसके पहले हुई तीन बहनों को तो कोई गिनती में गिनता भी नहीं था। दादी तो सुबह होते ही उसके हाथ में दूध से भरा गिलास पकड़ाती थी, साथ होता था मलाई लगा टोस्ट और बहनों को चाय से आधे भरे गिलास देकर काम पर लगा दिया जाता था। लड़की की जात हो, काम करना सीखोगी तभी ससुराल में निभोगी... नहीं तो नाक कटाएँगी निगोड़ी.. जैसे प्रवचनों से ही बहनों का नाश्ता भी हो जाता था....।

पर आज तो रंग-ढंग ही निराले थे। सुबह ही तीनों को बढ़िया उबटन लगाकर नहलाया गया, बालों की सुन्दर चोटी की गई, नए कपड़े पहनाकर ऐसे तैयार किया गया मानो कोई त्योहार हो। बिट्टू की ओर तो किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। देखते ही देखते घर में और भी लड़कियाँ जमा हो गईं। पिताजी ने सबके पाँव पूजे, गरमा-गरम खीर-पूरी खाने को दी। बिट्टू ने खीर के कटोरे को हाथ लगाया तो पिताजी ने आँखें लाल-पीली करके कहा, " दस मिनिट सबर नहीं है, पहले कन्या तो खा ले..।"

सारी कन्याएँ घर-घर घूमती फिरी। यहाँ-से न्यौता, वहाँ से न्यौता ..। खा-खाकर अघाई, खूब सिक्के, तरह-तरह की चीज़ें इकट्ठी कर घर ले आईं।

बिट्टू उदास हो घर के बाहर बैठा था कि पास का गुड्डू आया, "क्या हुआ बॉस, परेशान क्यों हो?" बिट्टू ने मन की दुविधा कह डाली। मन में डर था कि कही उसका राजसिंहासन डोल तो नहीं रहा है..।गुड्डू ठठाकर हँस पड़ा।

"अरे चिंता मत कर यार, आज नवमी है ना ...देवी माँ का दिन... बस एक ही दिन का राज-पाट है इनका...। कल से फिर जुट जाएँगी अपने काम-काज में... अगली नवमी के इन्तज़ार में...।"
...एक कड़वा सच... और सचमुच ही शाम होते ही घर-घर में कठोर पुकार मचने लगी.. अरी निगोड़ी... खेलती ही रहेगी या माँ के साथ हाथ भी बँटाएगी?

बिगुल बज गया था... एक दिवसीय साम्राज्य के अंत का....!

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