रोशनी के साए में
बलजीत सिंह 'बेनाम'रोशनी के साए में तीरगी अधूरी थी
होश भी अधूरा था बेख़ुदी अधूरी थी
ज़ुल्फ़ भी न खुल पाई हुस्न भी न खिल पाया
रात भी न पूरी थी चाँदनी अधूरी थी
रो नहीं सके खुल के इंतज़ार में उसके
आँख में नमी तो थी पर नमी अधूरी थी
जुस्तजू सुकूँ की थी मिल सकीं न राहें जब
लौट कर कहाँ जाते रहबरी अधूरी थी
आज ये कहेंगे हम सत्य की कसौटी पर
तुम अगर नहीं मिलते ज़िन्दगी अधूरी थी
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