रोम रोम में शिव हैं जिनके 

15-07-2020

रोम रोम में शिव हैं जिनके 

सुषमा दीक्षित शुक्ला  (अंक: 160, जुलाई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

रोम रोम में शिव हैं जिनके,
विष वही पिया करते हैं।
दुख दर्द जला क्या पाएगा,
जो अंगारों से सजते हैं।
 

माँ सती बिछड़ जब शिव से,
सन्ताप अग्नि में समा गई।
प्रायश्चित पूरा होते ही फिर 
मिलन हुआ जब उमा हुईं।
 

सागर मंथन का गरल पान,
देवों को अमृत सौंप दिया।
सोने की नगरी रावण को 
ख़ुद पर्वत पर्वत वास किया।
 

सारे जग को देकर वैभव,
पर ख़ुद वो भस्म रमाते हैं।
वो महाकाल, वो शिव शंकर 
वो भोलेनाथ कहाते हैं।
 

सच्ची निष्ठा के बलबूते 
शिव शंकर का अनुराग मिले।
फिर उनका तांडव क्रुद्ध रूप 
भोले भाले शिव में बदले।
 

कुछ विधि का लिखा हुआ होता,
कुछ कर्मों का फल होता।
सब दुख भूलो शिव भक्त बनो 
वही है सबके परमपिता।

 
रोम रोम में शिव है जिनके 
विष वही पिया करते हैं।
दुख दर्द जला क्या पाएगा 
जो अंगारों से सजते हैं।
 

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