ऋतु वसंत
भुवन चद्र उपाध्यायधरती आँचल ओढ़े धानी,
रंगीले परिधानो में।
मोहक मौसम लेकर आया
सौगातें उद्यानों में॥
सजी धजी है अमुंवा रानी,
कनक मंजरी हारों में।
पुलक रही ये बगिया प्यारी,
मादक मंद बयारों में॥
नई रवानी लौटी तृण-तृण
उमंग भरे अरमानों में ।
महक उठी हैं दसों दिशाएँ,
ख़ुशियाँ हैं असमानों में॥
फूल बरसते देखो नभ से
राहों में चौबारों में।
मुन्ना-मुनिया दोनों खोये
ख़ुश हैं मस्त बहारों में॥
कोयल कू-कू कूके बगिया,
गुन-गुन भौंरे गाते हैं।
चहक रही बुलबुल-गौरैया
दर-दर मंगल गाते हैं॥
व्योम हुआ है रंग बिरंगा,
लगदक है गुलमोहर भी।
वेणीं अलकें अमलतास की,
झूमे डहेलिया गैंदे भी॥
नील गगन में भरे पतंगें,
मानो लगता उत्सव हो।
मंद-मंद ख़ुशबू है पसरा,
गोया सृष्टि गद्गद् हो॥