रिक्त स्थान

06-09-2016

रिक्त स्थान

संजय पुरोहित

बड़े लेखक की पुस्तक छपी। प्रकाशक ने प्रथम प्रति लेखक को सौंपी। लेखक ने सरसरी नज़र से पन्ने पलटे। एक पृष्ठ में दो गद्यांशों के मध्य अनावश्यक रिक्त स्थान छूटा रह गया। लेखक ने आँखें तरेरीं। प्रकाशक ने क्षमा याचना की। लेखक काफ़ी दिन तक प्रकाशक से नाराज़ रहे, सो पुस्‍तक चर्चा न्‍यौती।

दो पत्र वाचकों ने परचे पढ़े। दोनों ने गद्यांशों के मध्य छूटे रिक्त स्थान को ग़लती बताया। अब बारी थी लेखककीय वक्तव्य की। लेखक बोले, "काश हमारे पत्रवाचक बंधु इस रिक्त स्थान का अर्थ समझ पाते! यह त्रुटिवश नहीं है। रिक्त स्थान के ऊपर वाले गद्यांश को पढ़ कर पाठक कुछ मनन करें, फिर अगले गद्यांश पर आएँ, इसी का संकेत है यह रिक्त स्थान।"

पत्रवाचक नासमझ साबित हो गये।

लेखक ने एक दृष्टि प्रकाशक पर डाली। मुस्कुरा रहा था वह।

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