रंग बदलूं कि रोशनी बदलूं

15-06-2021

रंग बदलूं कि रोशनी बदलूं

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

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रंग बदलूं कि रोशनी बदलूं
किस तरह अपनी ज़िंदगी बदलूं
 
अब तलक़ सोच ही नहीं पाई
 वक्त बदलूं कि ये घड़ी बदलूं
 
लोग अच्छा इसे नहीं कहते 
शौक़ बदलूं के शायरी बदलूं
 
मैं किसी और के लिए या रब
क्यूं भला अपनी आगही1 बदलूं
 
हर जगह हादसों से घायल है
कब तलक़ सोच की गली बदलूं
 
बात बनती हुई नहीं दिखती
अब तो अच्छा है बात ही बदलूं
 
सोचती हूं खिज़ां पे बरसूं मैं
और सूरत गुलाब की बदलूं
 
1. आगही=पहचान

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