राजकोष है खुला हुआ
पर लोग पलायन को मजबूर
राजमार्ग पर पैदल दल है
कितने विवश हुए मज़दूर
कहाँ भरोसा कैसे टूटा
क्यूँ सरकारी राशन से
जगह-जगह खैरात खुली
क्यों मोह भंग अश्वासन से
जो सरकारी राशन बाँटे
डाँटे माँगने वालों को
तरह तरह की बात सुनाये
विवश डरे बेहालों को
पहले राशन उन्हें मिलेगा
जिनके घर में कुछ न हो
लाइन में केवल वही रहें
जिनके राशन सचमुच न हो
वरना घर की चेकिंग होगी
फिर शर्मिन्दा होओगे
जो तुम से भी ज़्यादा विवश
यदि उनका राशन तुम लोगे
कहीं किसी के स्वाभिमान पर
लगा हो कोई आहत ठेस
खैराती खाकर जीने से
अच्छा भूखों मरना निज देश
सर पर लादे घर गृहस्थी
बगल दबाये वस्तु अनाम
भूखे प्यासे क़दम बढ़ाते
मन में मंज़िल है निज गाम
बंद है सब के सब जन वाहन
बंद हुई क़िस्मत निष्ठुर
ट्रॉली पर निज नन्हा सुलाए
निकल पड़े है कोसों दूर
पछताते पैदल पथ जाते
हुई कौन सी कैसी भूल
थक जाते दल से बल पाते
बातों में रहते मशग़ूल
खुला था जन धन खाता सबका
मदद भी देते खातों में
पता भी चलती मदद हीं है
या महज़ दिखावा बातों में
पैदल चलते पाँव में छाले
और हृदय में गहरा घाव
विवश सिंहासन पर सरकारें
दावे सारे निष्प्रभाव
लोग दयालु देश में अपने
कोई खाना कोई पानी दे
जिनसे बने कुछ पैसे भी दे
कोई हौसला वाणी दे
बीस दिवस लो बीत गये हैं
गाँव नहीं अब ज्यादा दूर
तन तो वैसे तार-तार पर
अभी भी हिम्मत है भरपूर
राजकोष है खुला हुआ
पर लोग पलायन को मजबूर
राजमार्ग पर पैदल दल है
कितने विवश हुए मज़दूर