आर. बी. भण्डारकर – डायरी 006 : प्रतिरोधक क्षमता

15-06-2021

आर. बी. भण्डारकर – डायरी 006 : प्रतिरोधक क्षमता

डॉ. आर.बी. भण्डारकर (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

दिनांक 10 जून 2021

कोविड-19 की दूसरी लहर ने लोगों को हिलाकर रख दिया है।  कुछ दिनों पहले जो व्यक्ति अच्छा-भला था, 10-15 दिन बाद ही उसके दुनिया छोड़ने की सूचनाएँ मिलने लगती हैं।  ऐसे समाचार मन विचलित कर देते हैं।  भावों में उद्वेलन होने लगता है। 

कैसी होती हैं मन की भावनाएँ; सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनी रहती हैं।  होता यह है कि जीवन में देखी, सुनी, बीती, भोगी घटनाएँ मन-मस्तिष्क में ऐसे समा जाती हैं कि निकाले नहीं निकलतीं। यद्यपि सम्पूर्ण भारतीय वाङ्गमय में संसार की नश्वरता, क्षण भंगुरता के शाश्वत व प्रेरक कथन भरे पड़े हैं, फिर भी हम इस सत्य से नावाकिफ़ जैसे ही बने रहते हैं।  कबीर साफ़ कहते हैं—

"पानी केरा बुद बुदा अस मानुस की जात। 
देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात॥"

कबीर यह भी कहते हैं कि इस नश्वर संसार में कब क्या होगा, कहा नहीं जा सकता—

"पाव पलक तो दूर है, मोपै कहा न जाय। 
न जाने क्या होयगा, पल के चौथे भाय॥"

कहा जाता है कि सांसारिक मोह से प्रीत उपजती है। प्रीत (अपनों के प्रति प्रीत) से भय उपजता है। भय दुख का कारण बनता है। सांसारिक जीवन में यह सब अवश्यम्भावी होता है। इसी से छुटकारा लेने की प्रक्रिया को परम् सत्य की ओर बढ़ना कहा जाता है। यह सही है कि संसारी व्यक्ति भाव लोक में अधिक देर ठहर नहीं सकता, उसे जीवन के ठोस धरातल पर उतरना ही पड़ता है। तभी वह तमाम सत्यताओं का ज्ञान समेटे, तमाम दुखों का सामना कर जीवन में आगे बढ़ पाता है। 

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क्या जीवन केवल नश्वरता ही है। नहीं न? जीवन देव-दुर्लभ है। जीवन जितना भी है, कुछ सार्थक करने के लिए है। आनंद के लिए है। सुचिंत्य भाषा विद एवं प्रखर आलोचक डॉ. शंकर सिंह तोमर एक स्थान पर लिखते हैं—

"आर्ष-साहित्य में ब्रह्म के सम्बंध में परिकल्पना है—सच्चिदानंद =सत (The essence), चित (consciousness), आनंद (The happiness)। भाव जगत में सर्वोत्कृष्ट स्थिति आनंद की ही है, सुंदर की नहीं।  व्यक्ति को अपने जीवन में आनंद की स्थिति प्राप्त करनी चाहिए। आनंद की स्थिति ही उसे ब्रह्मत्व का बोध कराती है, लौकिकता से परे ले जाती है।"

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इस कोरोना-काल में आंग्ल भाषा के कुछ शब्द शहरी या ग्रामीण, साक्षर निरक्षर सभी लोगों की ज़बान पर ऐसे चढ़े कि लोग इनके स्थानापन्न, इनसे भी अधिक सार्थक हिंदी के शब्दों को क्षणे भूल गए। दो शब्द उल्लेखनीय हैं—इमिन्युटी और एंटीबॉडी। 

एक साहब से प्रश्न किया गया कि कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन के अलावा इमिन्युटी /एंटीबॉडी बढ़ाने के और कौन-कौन से उपाय हैं। उनका उत्तर था, "बहुत से हैं। एक यह कि आप दफ़्तर/प्रतिष्ठान से या बाहर से आये हैं, कपड़े बदल भी नहीं पाए कि आपका दो-तीन साल का बच्चा खिलखिलाता हुआ आता है और आपके पैरों से लिपट जाता है, आप प्रसन्न होकर उसे गोदी में उठा लेते हैं, विश्वास मानिए आपके शरीर में उसी समय ढेरों एंटीबॉडी बन गए।"  यह बातचीत जब मैंने सोशल मीडिया पर सुनी तब मुझे स्मरण आया कि मेरी इमिन्युटी मज़बूत होने का सबसे बड़ा जरिया तो मेरी दोनों पोतियाँ—मिट्ठू जी, पीहू जी और मेरे दौहित्र ओम भैया जी हैं। 

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मैंने और मेरी पत्नी जी ने अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाया। हम लोगों के माता-पिता मनाते होंगे, ऐसा कोई स्मरण हमें नहीं है। हम अपने बच्चों—एक पुत्र और दो पुत्रियों के जन्मदिन अवश्य मनाते आये हैं। केक तो कभी नहीं काटा . . . सुबह स्नान-ध्यान करके सब लोग मंदिर जाते, पूजा-अर्चना करते फिर घर आ जाते। शाम को पत्नी जी पूड़ी और खीर बनाती, और दो-तीन तरह की सब्ज़ियाँ। एक मिठाई अवश्य ही बनातीं—खोपरा पाग या बर्फी या गुलाब जामुन। (बाज़ार की मिठाई आती अवश्य पर पत्नी जी को उसकी पवित्रता पर संदेह रहता) पत्नी जी बच्चों के साथ मिलकर बैठक (Drawing Room) सजातीं—आम के पत्तों से, तोरणों से। यहीं छोटी सी टेबल पर एक थाल में आटे के बने उतने दीपक रखे जाते जो जिसका जितनवां जन्मदिन होता। इन दीपकों में घी डाला जाता और धवल रुई की बत्तियाँ। अब एक अन्य थाल में पत्नी जी एक प्रज्ज्वलित दीपक, स्वयं द्वारा बनाई हुई मिठाई, नारियल, जलती हुई अगरबत्ती आदि रखतीं; इसी में रोली, दही, अक्षत पुष्प, कुछ शगुन के रुपये आदि रखतीं। घर के मंदिर में पूजा करके बैठक में आतीं। मतलब, तैयारी पूरी, जन्मोत्सव शुरू। जिसका जन्मदिन होता, वह आता, दीपक जलाता। सभी दीपक जल उठते तब, सब लोग तालियाँ बजाते। फिर पत्नी जी बच्चे को तिलक करतीं, आरती उसारतीं, बच्चे को मिठाई खिलातीं, फिर उसके दोनों गाल चूमतीं, पुष्प गुच्छ सहित कुछ उपहार अवश्य देतीं, फिर वह थाली मेरी ओर बढ़ा देतीं। 

पहले टीका पत्नी जी ने किया; क्यों? वह माँ है अस्तु पहला अधिकार उन्हीं का है।

. . . अब मैं भी पत्नी की तरह प्रक्रिया दुहराता, फिर शेष दोनों बच्चे भी यही प्रक्रिया दुहराते। इसके बाद पत्नी जी द्वारा बनाई गई, मेरे द्वारा बाज़ार से लाई गई मिठाई छोटे-छोटे पैकेटों में रख कर अपने कुछ पड़ोसियों के यहाँ इस क्षमा याचना के साथ पहुँचाते कि 'अमुक का जन्मदिन था घर पर ही मनाया, किसी को बुलाया नहीं। ' और फिर घर के सब सदस्य सुस्वादु भोजन जीमते। किसी-किसी वर्ष सम्बन्धित नगर में रहने वाले रिश्तेदारों, कतिपय पड़ोसियों तथा बच्चे के सहपाठियों को भी बुला लेते रहे हैं। 

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अब जब से मेरी तीसरी पीढ़ी आयी है, जन्मदिनों का नज़ारा कुछ कुछ बदल गया है। तीसरी पीढ़ी में अभी तीन ही सदस्य हैं—पोती द्वय—मिट्ठू जी(9+) पीहू जी(6+)और दौहित्र ओम भैया जी(4+) लेकिन ये सब पर भारी पड़ते हैं। 

नर्सरी, लोअर केजी, अपर केजी पार करके मिट्ठू जी कक्षा 1 में पहुँचे। एक दिन अपनी दादी के पास बैठकर बोले, "दादी जी, अपनी फैमिली (Family) में टेन (Ten) मेम्बर्स (Members) हैं—बब्बा जी, दादी जी आप, पापा जी, मम्मा जी, बड़ी बुआ जी, फूफा जी, छोटी बुआ जी, मैं, पीहू बिटिया जी और ओम भैया जी। आप मुझे सबके जन्मदिन बताओ।" दादी जी जन्मदिन बताती गईं, मिट्ठू जी ने एक डायरी में नोट कर लिए। तब से अब तक जैसे बड़ों की चिंता रोटी, कपड़ा, शिक्षा , स्वास्थ्य होती है तो मुझे लगता है कि तीसरी पीढ़ी के इन तीनों की चिंता भोजन, होम वर्क और जन्मदिन ही बनी रहती है। इनकी ज़िद से ही तो अब बच्चों के अलावा हम दोनों के भी जन्मदिन मनने लगे हैं। अहो भाग्य! 

आज मिट्ठू जी ने कहा, अब सबसे पहले मेरा जन्मदिन आएगा, तो पीहू जी बोले, “नहीं, अब सबसे पहले मेरा जन्मदिन आयेगा।” ओम भैया जी क्यों पीछे रहते; बड़ी ही तल्ख़ी से बोले– “आउल (Owl) अभी तो पहले मेरा जन्मदिन आयेगा।” मिट्ठू जी सबके जन्मदिन का माह बताकर उन दोनों को समझाते हैं। उनकी बात मान ली जाती है, दोनों की बड़ी दीदी है न। 

अब चर्चा यह कि जन्मदिन पर किन-किन फ़्रेंड्स को बुलाया जाए, स्कूल में मैम लोगों के लिए कौन सी टॉफ़ी कौन सी गिफ़्ट और सहपाठियों के लिए कौन सी टॉफ़ी, गिफ़्ट ली जानी चाहिए। बैठक को कैसे सजाया जाये। कितने लेयर का किस फ़्लेवर का केक आना चाहिए। केक की बात आते ही सबसे पहले ओम भैया बोलते हैं—थ्री लेयर, स्ट्रॉबेरी फ़्लेवर का केक, पीहू बोले टू लेयर का चॉकलेट फ़्लेवर का केक। अंतिम रूप से छोटी बुआ के निर्णय पर सब राज़ी होते हैं, पीहू, ओम दोनों की इच्छा का समन्वय कर तय कर लिया जाता है कि केक दो लेयर का स्ट्राबेरी फ़्लेवर का मँगवाया जाएगा। . . . यह स्थिति प्रत्येक के जन्मदिन पर बनती है। एक बात और कि एक जन का जन्मदिन मनते ही इन्हें अगले के जन्मदिन की चिंता सताने लगती है। 

मिट्ठू जी के जन्मदिन की चर्चा अवश्य चलने लगी है पर अभी वह दिन काफ़ी दूर है इसलिए मुझे लगता है कि यहाँ दादी के जन्मदिन का उल्लेख करना समीचीन है। 

दादी जी का जन्मदिन यानी 15 मई। इस बार मना ही नहीं। एक तो लॉक डाउन में मिट्ठू जी, पीहू जी बाहर हैं, अपने पापा के पास; दूसरा बड़ा कारण यह कि कुछ ही दिन पहले समधी जी के दिवंगत होने से सबका उत्साह ग़ायब है, सब निस्तेज से हैं। . . . हाँ, बच्चों के दिमाग़ में तो जन्मदिन माने जन्मदिन। . . . भले ही न मनाओ,  . . .लेकिन, दादी जी को हम गिफ़्ट तो भेज ही सकते हैं।  गिफ़्ट्स उसी दिन आ गए थे। आप भी देखें यह नायाब  गिफ़्ट्स—

ओम भैया का गिफ़्ट

 

पीहू जी ने अपनी दादी जी के जन्मदिन पर केक ही बना कर भेज दिया

मिट्ठू जी ने दादी जी का पोट्रेट बना कर भेजा : जन्मदिन का उपहार

 

 

बच्चों के यह गिफ्ट्स देखकर अनायास मुस्कान आ जाती है चेहरे पर, सभी पीड़ाएँ दूर हो जाती है, क्षण भर के लिए। ....... 

सच बच्चे परिवार -उद्यान के प्रफुल्लित पुष्प है। यह अपनी हँसी, अपनी सुगन्ध बिखेरते हैं, हमें अपने पास बुलाते हैं, हँसाते हैं।  बच्चे लय हैं, गति हैं, देह धरे निरन्तरता हैं। बच्चे भविष्य हैं हमारे, परिवार के देश के, मानव-जाति के। बच्चे भविष्य हैं ज्ञान के विज्ञान के। बच्चे प्रतिनिधि हैं मस्तिष्क के हृदय के। ये झंकार हैं हृदय-तन्त्री के। अस्तु, बच्चे हैं तो हम हैं। 

इति शुभम।

 

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