क़लमकार

निलेश जोशी 'विनायका' (अंक: 168, नवम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

गूढ़ अर्थ पिरो कर शब्दों में
मानव की पीड़ा कह देता
हृदयों के गहरे अंधकार को
अपनी उर्जा से हर लेता।
 
शब्द बहुत छोटे हैं उसके
अर्थ उजाले के भर देता
क़लमकार गागर में सारा
ज्ञान का सागर भर देता।
 
अपने शब्दों के बल से जो
आग लगा दे सागर में
अपने लेखन की धारा से
रक्त सजा दे अंबर में।
 
क़लमकार की कविता सुनकर
गूँगे भी हँस देते हैं
अंडे से निकले चूज़े भी
बाज़ों से लड़ लेते हैं।
 
शृंगार वीर और हास्य रसों की
कविताएँ कर जाता है।
शब्दों में देवत्व जगा वह
क़लमकार कहलाता है।
 
क़लमकार की भाषा से तो
भरा हुआ पूरा इतिहास
अपने गहन विचारों से जो
देता हमें सुखद एहसास।

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