मैं कलाकार ना नामदार,
अंधियारे में छिप रहता हूँ,
कुछ लिखता हूँ, कुछ पढ़ता हूँ,
कुछ सुनकर सोचा करता हूँ।

 

कभी विषय लिखूँ,कभी भाव लिखूँ,
कभी भाग्य का दाँव लिखूँ,
मैं लिखता हूँ अंतर्मन से,
मैं धूप में शीतल छाँव लिखूँ।

 

मैं लिखता हूँ इतिहासों पर,
जो समय ने धूमिल कर डाला,
मैं लिखता हूँ उन मुद्दों पर,
जिसने शोषित जन कर डाला।

 

मैं प्रसिद्धि का ना अनुयायी,
मैं मानवता की परछाई,
मैं लिखता हूँ अधिकारों पर,
समस्या क़लम से समझाई।

 

मत समझो मुझको हीन दीन,
मैं सच्ची बातें कहता हूँ,
मैं साधारण सा लेखक हूँ,
सरल भाव से रहता हूँ।

 

मैं कलाकार ना नामदार,
अँधियारे में छिप रहता हूँ,
कुछ लिखता हूँ, कुछ पढ़ता हूँ,
कुछ सुनकर सोचा करता हूँ।

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