क़लम, काग़ज़, स्याही और तुम
हरिपाल सिंह रावत ’पथिक’उकेर लूँ, काग़ज़ पर,
जो तू आए,
ख़्वाबों में ए ख़्याल ।
बस...
क़लम, काग़ज़, स्याही...
और तुम,
मैं बह जाऊँ... भावों में,
अहा!
जो तू आये...
भाव...
रचना की आत्मा से मिल,
बुन आयें, पश्मीनी...
ख़्वाबों का स्वेटर,
ओढ़ता फिरूँ जिसे,
दर्द की सर्द सहर में,
जो दे जाए सर्द में गरमाहट...
दर्द में राहत,
अहा!
क़लम, काग़ज़, स्याही और तुम
जो तू आए,
ख़्वाबों में ए ख़्याल ।