प्यारा बचपन
रीता तिवारी 'रीत'चिंता रहित खेलना खाना,
वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है,
बचपन का अतुलित आनंद।
माँ की लोरी प्यार पिता का,
दादा दादी का वह प्यार।
देता था आनंद सदा ही,
बचपन का वह घर संसार।
नहीं पता थी दुनियादारी,
ना कोई भी हिस्सेदारी।
भाई बहनों के प्रति प्रेम,
नहीं कोई भी ज़िम्मेदारी।
छोटी-छोटी नाव अनोखी,
छोटी नदियाँ नाव भी छोटी।
खेले ख़ूब अनोखे खेल,
छोटी पटरी छोटी रेल।
पेड़ों के पत्तों में घुसना,
स्कूल न जाने का ढूँढ़ना बहाना।
खेल-खेल में रूठना मनाना,
एक दूजे को ख़ूब सताना।
नहीं पता चलती थी हार,
नहीं पता चलती थी जीत।
कहाँ गया वह बचपन बीत,
अपने सपने अपनी रीत।
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