पुराने दोस्त

04-02-2019

पुराने दोस्त

अब्बास रज़ा अलवी

सब कहते हैं कि हम सब साठ साल के हो गये
लगता भी कुछ ऐसा है और सच्चाई भी यही है
सफ़ेद और थोड़े काले बाल
ज़िंदगी के बचे कुछ साल
ख़्यालों में अक्सर सोचता हूँ
पीछे मुड़ कर बीता देखता हूँ
पक्की सड़कों पे रोज़मर्रा इसी दौड़ भाग में
गर्मी सर्दी बारिश और सूखे की मार धाड़ में
कितनी तेज़ी ज़िंदगी का वक़्त निकल गया
पिछले साठ सालों का सफ़र कैसे गुज़र गया
कुछ पता ही न चला

इन बीते साठ सालों में
बहुत से मेरे दोस्त बने
कुछ मुझको छोड़ गये
कुछ दुनिया में कहीं खो गये
कुछ दुनिया से जुदा हो गये
और आज भी अनगिनत दोस्त हैं
रोज़ मिलते हैं और बहुत क़रीब हैं

और शायद फिर इसी तरह नये नये दोस्त बनते रहेंगे
जब तक मेरा जिस्म साँस लेता रहेगा

पर
वोह दोस्त जो चालीस साल पहले बने थे
साथ साथ पढ़े थे
खेले कूदे थे
अपने बचपन में
जिनसे शायद इन पिछले बीते सालों में
उनसे कुछ बार ही मिल पाया मैं सालों में
वोह मुझे आज भी
अपने सगों से ज़्यादा अच्छे लगते हैं
क्यों...?

इसका जवाब तो मेरे पास नहीं
पर इसका विश्वास मेरे पास ज़रूर है
शायद तुम्हारे पास भी
टटोलो ख़ुद को
हम दिल के
किसी न किसी भी कोने मैं
कहीं न कहीं साथ साथ हैं
बसे हैं
और सारी ज़िंदगी
बसे रहेंगे
तुम्हारे
हम

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