प्रेमचंद पथ पत्रिका का नया अंक

01-07-2021

प्रेमचंद पथ पत्रिका का नया अंक

डॉ. मीना बुद्धिराजा (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

स्त्री रचनाकारों की जन्मशताब्दी विशेषांक (चंद्र किरण सौनरेक्सा, शान्ति अग्रवाल, शकुंत माथुर, और फणिश्वर नाथ रेणु विशेषांक)

समीक्षित पत्रिका: प्रेमचंद पथ
जन्मश्ताब्दी विशेषांक (फणीश्वर नाथ रेणु, चंद्र किरण सोनरेक्सा, शकुंत माथुर, शान्ति अग्रवाल)
अतिथि सम्पादक: डॉ. शुभा श्रीवास्तव
सम्पादक: राजीव गोंड 
प्रकाशक: सन प्रिंटिंग वर्क्स, २३ विवेकानंद नगर, तेलियाबाग, वाराणसी
मूल्य: 100.00 रु. (डाक ख़र्च २०रुपये अतिरिक्त)
पृष्ठ संख्या: 212 

पत्र-पत्रिकाएँ समाज में जनसरोकारों और विचारों को बचाए रखने का महत्वपूर्ण माध्यम और सशक्त विकल्प होती हैं। रचनात्मक दायित्व और सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ ही ये मनुष्य के आलोचनात्मक विवेक को भी जीवित रखती हैं। कथा सम्राट प्रेमचंद एक प्रकाश स्तंभ की तरह इन मूल्यों को दिशा दिखाते रहे हैं और लमही से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका "प्रेमचंद पथ" भी इस परम्परा को निभा रही है जो जनचेतना के पक्ष में निरन्तर सक्रिय है। लमही वाराणसी से प्रकाशित जनचेतना के लिए प्रतिबद्ध त्रैमासिकी 'प्रेमचंद पथ' राजीव गौड़ जी के संपादन में निरंतर छह सालों से निकल रही साहित्यिक पत्रिका है।

इस पत्रिका का नया अंक जनवरी–मार्च 2021 जन्मशताब्दी विशेषांक के रूप में आया है जो समकालीन और स्त्री विमर्श के दौर में ज़रूरी और सार्थक प्रयास है। इस विशेष अंक का अतिथि संपादन "डॉ. शुभा श्रीवास्तव" ने बहुत ही सफलता पूर्वक किया है जो एक लेखिका-आलोचक के रूप में हिंदी साहित्य के इतिहास में आधी आबादी अर्थात स्त्रियों के रचनात्मक योगदान पर बहुत पहले से गहन शोध के साथ लिख रही हैं। पहली बार स्त्री रचनाकारों की जन्मशताब्दी विशेषांक के माध्यम से युवा पीढ़ी के मार्गदर्शन, पाठकों, शोधकर्ताओं के लिए स्त्री विमर्श के ऐतिहासिक योगदान को याद करने के लिए प्रेमचंद पथ पत्रिका का यह अंक मूल्यवान और सार्थक है।

2020 में महान कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के साथ ही जिन चार महत्वपूर्ण स्त्री रचनाकारों की जन्मशती मनाने का कार्य हिंदी जगत में अधूरा था उसे इस पत्रिका ने पूरा किया है। इन स्त्री लेखिकाओं ने कथा साहित्य, कविता, बाल साहित्य और लोक साहित्य के क्षेत्रों में अभूतपूर्व कार्य किया लेकिन पुरुषसत्तात्मक साहित्य के इतिहास में इन्हें वाजिब स्थान नहीं दिया गया। लेकिन इससे इनका महत्व कहीं भी कम नहीं होता और इस विशेषांक में उन्हें याद करके इसी ऐतिहासिक दायित्व को निभाया गया है। 

इन स्त्री रचनाकारों में कथाकार चन्द्रकिरण सोनरेक्सा, तारसप्तक की कवयित्री शकुन्त माथुर, लेखिका शान्ति अग्रवाल और इतिहास में अल्पज्ञात रचनाकार आदर्श कुमारी के रचनात्मक मूल्यांकन का, उनकी रचनाओं का उल्लेख करके पाठकों तक इनकी उपलब्धियों को पहुँचाया गया है। 

1920 के आसपास जिन कठिन परिस्थितियों और पारिवारिक-सामाजिक बंधनों के होते हुए भी जिस स्त्री स्वातंत्र्य की नींव इन लोगों ने रखी वह आज की स्त्री मुक्ति के विमर्श की आधारशिला है। यह विशेषांक स्त्री संपादक के नज़रिए से स्त्री लेखन का नया पाठ है और स्त्री अस्मिता को इतिहास लेखन में हाशिये पर छोड़ दिये गए अस्तित्व को पुनः केंद्र में लाने की सार्थक कोशिश और एक स्वतंत्र मानवीय इकाई के रूप में साहित्य के समकालीन परिदृश्य में उसकी गरिमा को प्रतिष्ठित करने का प्रयास है जिसके लिए निःसंदेह यह संपादकीय और स्त्री विमर्श की उपलब्धि है।

इस अंक में सभी रचनाकारों पर बहुत सार्थक और गम्भीर लेख संयोजित हैं जिनमें वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया, अरविंद त्रिपाठी, डॉ. रीता राम दास, डॉ. उषा रानी राव, डॉ. मीना बुद्धिराजा, डॉ. मिथिलेश कुमारी, सपना सिंह, सुप्रिया सिंह, अलका तिवारी इत्यादि के कई महत्वपूर्ण लेख शामिल हैं। 

रेणु पर कुल सात लेख हैं जिनमें उनकी ग्रामीण संवेदना दिखती है। रेणु के कथा संसार के साथ उनकी प्रासंगिकता का प्रश्न भी विवेचित किया गया है।

चंद्र किरण सौनरेक्सा की कहानियों, उपन्यासों की विस्तृत समीक्षा के साथ ही उनकी महिला पत्रिका 1942 में प्रकाशित "हिन्दी की दो कविता पुस्तकें" आलोचना संग्रहणीय है। 1942 में स्त्री लेखन ही दुर्लभ था उस समय स्त्री आलोचना का यह श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसके साथ ही चंद्र किरण जी के पुत्र कौन्तेय सौनरेक्सा तथा पुत्री कल्पना प्रसाद का संस्मरण उनके अनछुए पहलुओं को रेखांकित करता है। 

अज्ञेय की खोज शकुंत माथुर के काव्य संसार को उषा रानी, मीना बुद्धिराजा और पद्मा जी का लेख नई कविता के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। शकुंत जी को तार सप्तक से इतर रखकर उनकी मूल प्रतिभा को सही दिशा में स्थापित किया गया है। बीना बंसल जी का अपनी माँ के प्रति भाव और कुछ छुपे तथ्य उनके संस्मरण के माध्यम से पाठकों के समक्ष उपस्थित हुए हैं। शकुंत जी की समालोचन प्रतिभा का परिचय कराता उनका ख़ुद का लेख इस अंक की विशेष उपलब्धि कहा जा सकता है।

अल्पज्ञात रचनाकार शान्ति अग्रवाल और आदर्श कुमारी को प्रथम बार हिन्दी साहित्य के पाठक के सामने लाने का श्रेय निःसंदेह प्रेमचंद पथ को जाता है। शान्ति अग्रवाल विस्मृत बाल साहित्य के अतिरिक्त स्वतंत्रता संग्राम में रचनात्मक सहयोग को पत्रिका व्यापक स्तर पर रेखांकित करती है। आदर्श कुमारी के लोक साहित्य की उपलब्धियों को इस पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसके अतिरिक्त धरोहर शीर्षक में इन सभी रचनाकारों की मूल्यवान सामग्री को रखा गया है। पत्रिका notnul पर भी उपलब्ध है और संग्रहणीय है।

प्रेषिका: 
डॉ मीना बुद्धिराजा 
एसोसिएट प्रोफेसर 
अदिती महाविद्यालय दिल्ली
meenabudhiraja67@gmail.com

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