प्रेम उपहार

30-04-2007

प्रेम उपहार

सुमन कुमार घई

तुम्हारे मनोराग में मैं रागान्वित,
मेरी मन वीणा को झंकार दे दो।
प्रिय याचक को प्रेम उपहार दे दो॥


कामना हो तुम मेरे मन की,
या हो जीवन भर की अर्चना।
तुम मधुर स्वप्न हो मेरा, या
हो किसी कवि की कल्पना।


कल्पना हो तो स्वप्न साकार दे दो।
या अर्चना बन कर प्रतिकार दे दो॥


स्नेह की झरी थी जो बूँद,
कब तक उसे ही पीऊँगा मैं।
स्मिति की बिखरी थी किरण,
कब तक उसमें जीऊँगा मैं।


प्यासे अन्धेरों को मिटा दो।
प्रिय प्रेम प्रकाश पारावार दे दो॥


प्रेम पाश में तो बँध चुका,
अब बाहुपाश में बाँधो प्रिय।
करो प्रतिहार मन-तृष्णा का,
प्राण प्राणों में बाँधो प्रिय।


कर सको तो करो तुष्ट हिय।
प्रेम पिपासु को उद्धार दे दो॥


मेरे मरु से जीवन में,
नीर का आभास तुम हो।
नीरा तुम्हीं, तुम्हीं जलदा,
मेरे मन की प्यास तुम हो।


प्रेम कलश से भरो ओक,
प्रिय-अंजुरी भर प्यार दे दो॥


तुम्हारे मनोराग में मैं रागान्वित,
मेरी मन वीणा को झंकार दे दो।
प्रिय याचक को प्रेम उपहार दे दो॥
 

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