प्रवीन वर्मा ’राजन’ मुक्तक - 1

15-05-2020

प्रवीन वर्मा ’राजन’ मुक्तक - 1

प्रवीन वर्मा 'राजन' (अंक: 156, मई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

1.
किसानों की आह को मैं उपहास नहीं लिख सकता। 
झूठे वृत्तांत को सच का इतिहास नहीं लिख सकता। 
चाटुकारों की तरह चरण वन्दन मुझे नहीं भाता, 
मज़दूर के आँसू को मैं विकास नहीं लिख सकता।
2.
दर्द सहकर भी मुस्कराना कहाँ आसान होता है।
किसी के हृदय में बस जाना कहाँ आसान होता है।
माना कि बहुत से ग्रंथ पढ़ डाले होंगे तुमने मगर,
किसी के मौन को पढ़ पाना कहाँ आसान होता है।
3.
नित मरती हो जब मनुजता मैं प्रेम गीत कैसे लिख दूँ।
मजबूरों की सिसकती आहों को संगीत कैसे लिख दूँ।
जब हृदय व्यथित हो जाये भूखे बच्चों की अकुलाहट से,
अश्कों की बहती धारा को मन का मीत कैसे लिख दूँ।
4.
शहीदों की शहादत पर अभिमान होना चाहिए।
राष्ट्र के प्रति समर्पण का सम्मान होना चाहिए।
जो बलिदान हुए अपने वतन की माटी के लिए,
उनके शौर्य पराक्रम का गुणगान होना चाहिए।

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