शुभकामनाएँ ख़ूब बाँटते
अहा आंग्ल नववर्ष की
नया तो ऐसा कुछ नहीं
बस वर्षगाँठ है वर्ष की
तिथि संग जब-जब वर्ष बदलते
नव संकल्प उत्कर्ष का
चन्द्र-सूर्य धरा कुछ नहीं नूतन
क्या नया है? विषय विमर्श का
यहाँ सिर्फ़ पंचांग बदलते
नहीं बदलती प्रकृति
अभी दिखते झड़ते पत्ते
आस भरी संघर्ष की
धरा ठिठुरती सूरज ठंडा
मध्य रात्रि दुर्मर्ष1 की
ह्रासित वन उपवन जगजीवन
दसों दिशा अपकर्ष2 की
अभी नहीं फागुन की मस्ती
अभी चैत का चैता दूर
अभी दूर लगती है आहट
कोयल कूक, रंग हर्ष की
अभी न पेड़ों पर नव-पल्लव
नहीं बसंती रंग कहीं
नहीं लालिमा, हरितिमा नहीं
नहीं कोई बात प्रहर्ष की
आएगी लिये रंग उमंग कूक
राग बसंती फागुनी हर्ष की
अहा सुखद कितनी प्रतीक्षा
है हिन्दी नववर्ष की
दुर्मर्ष = असह्य
अपकर्ष = घटता हुआ