प्रभु कृपा की यह निशानी है

15-02-2021

प्रभु कृपा की यह निशानी है

जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’  (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

प्रभु कृपा की यह निशानी है।
चल रही जो ज़िंदगानी है।
 
साथ में कुछ भी न जाएगा।
सारी दौलत छोड़ जानी है।
 
सुख दुखों की बह रही नदियाँ।
नाव ख़ुद अपनी चलानी है।
 
कर्म करते हम रहें अपने। 
तब सफलता पास आनी है।
 
प्रेम का यदि भाव हो मन में।
ज़िंदगानी तब सुहानी है।
 
मत करो झूठा दिखावा तुम।
सब यहीं क़ीमत चुकानी है। 
 
ज़िंदगी है चार दिन की यह।
सब यहीं पर बीत जानी है।

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