पावर वालों का पावरफ़ुल कुत्ता

15-03-2020

पावर वालों का पावरफ़ुल कुत्ता

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 152, मार्च द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

सुनो साबजी! वह ऐसा वैसा कुत्ता नहीं था। अब वह सत्ता में छाए नेताजी का कुत्ता था। वह कुत्ता तो था पर नेताओं की तरह का ही वफ़ादार टाइपिया कुत्ता था। नेताओं की तरह वह भी अपने गले में डाल दिनरात वफ़ादारी का ढोल पीटता , पर था अपने तक ही सीमित। अपने नेता के साथ रहते रहते वह भी नेचरवाइज़ उन जैसा ही हो गया था। 

नेताजी द्वारा अपने पर होने वाली जाँचों के डर से बहुत से इस उस दल के धमकाए, भभकाए नेता उनके दल में शामिल होने लगे तो उनका राजनीतिक कुनबा दिन दुगना-चौगुना बढ़ने लगा। दूसरी पार्टियों के ऑफ़िसों पर ताले लगने लगे तो उनके ऑफ़िस के बाहर उनके दल में शामिल होने वाले नेताओं के लिए तंबू लगने लगे। छल-बल उनकी पार्टी का विस्तार होने लगा। 

तब एकाएक उन्हें ख़्याल आया कि क्यों न अपनी पार्टी में दूसरे दलों के नेताओं की तरह अपने कुत्तों में उनके दल के कुत्ते भी मिला लिए जाएँ तो उनके कुत्तों के दल में भी बढ़ोतरी हो जाए? बस फिर क्या था! वे पावर में तो थे ही, बुरी तरह से। उनके दिमाग़ ये ख़्याल बिजली की तरह कौंधते ही उन्होंने दूसरे दल के नेताओं के कुत्तों के आगे भी अपने वर्करों से चारा डलवाना शुरू किया और देखते ही देखते दूसरे दल के नेताओं के कुत्ते भी उनके कुत्तों के दल में शामिल होने लगे। तब विपक्ष के कुत्तों ने भी सोचा कि जब उनके पार्टी के ही दो टाँगों वाले पार्टी के वफ़ादार नहीं रहे तो वे चार टाँगों वाले उनके वफ़ादार क्यों रहें? कटोरे में सड़ी छाछ की जगह ताज़ी-ताज़ी मलाई किसे नहीं सुहाती?

..... और एक दिन नेताजी का, मालिक बदलकर आया कुत्तों का महासचिव कुत्ता बीमार हो गया। पता नहीं उसे सत्ताधारी दल की मलाई नहीं पची या.... वही जाने।

नेताजी ने उसे अपने कुत्तों से अधिक तव्वजो देते हुए उसके इलाज के लिए विशेष इंतज़ाम करने की सोची ताकि जनता में ये संदेश जाए कि वे दूसरे दल से उनके दल में शामिल हुए कुत्तों से भी उतना ही प्यार करते हैं जितना अपने वोटरों से। उनकी नज़रों में अपना पराया कोई नहीं। वे सबको एक आँख से देखने के हिमायती हैं। चाहे उनकी बीवी हो चाहे दूसरों की।

ज्यों ही अख़बार के मुख पृष्ठ पर नेताजी के सरकारी विज्ञापन के साथ उनके दल में शामिल हुए बीमार कुत्ते की पाँच कॉलम की ख़बर छपी तो पूरी स्टेट का पशुओं का तो पशुओं का, आदमियों तक का स्वास्थ्य महकमा परेशान हो गया। कुत्ते की बीमारी को लेकर आदमियों का इलाज बंद कर घंटों विचार मंथन होने लगा। स्टेट के हर ज़िले के सीएमओ उनके कुत्ते के इलाज के लिए उसके कमरे के बाहर एक दूसरे को पीछे धकेलते हुए। एक दूसरे के गले से एक दूसरे का हार्ट धड़कन चेक यंत्र छीनते-झपटते। तय था जो नेताजी के कुत्ते का इलाज करेगा वही स्टेट मेडिकल डायरेक्टर के पद का डायरेक्ट हक़दार होगा। 

कुत्ते ने अपने आगे अपने तो अपने, अदमियों के मुख्य चिकित्सकों तक बाजू चढ़ाए उसके इलाज को आतुर देखा तो उसे आदमियों के चिकित्सकों पर रोना आया। वाह रे लोकतंत्र! आह रे लोकतंत्र! तब उसे पहली बार पता चला सत्ता वाले नेताजी के साथ रहने पर अपनी पावर का।

नेताजी के कुत्ते के ताज़े अपडेट्स जनता तक पहुँचाने के लिए अख़बारनवीसों का वहाँ जमावड़ा लग गया। देश दुनिया की बाक़ी सारी ख़बरें बैकफ़ुट पर। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले अपनी अपनी गाड़ियाँ लेकर वहाँ से नेताजी के कुत्ते की बीमारी का सीधा प्रसारण करने में व्यस्त। कुत्ता दिखे तो उनका यहाँ आना सार्थक हो। पर कुत्ता था कि अपने कमरे के सोफ़े पर बीमार होने के बाद भी मज़े से सोया हुआ। 

कुत्ते के इलाज के लिए लाइन हाज़िर हुए पशुओं और आदमियों के सीएमओ की हाज़िरी लगी तो पाया गया कि नेताजी के ज़िले का आदमियों का सीएमओ कुत्ते के दरबार में नहीं पहुँचा है। बस, फिर क्या था! देखते ही देखते नेताजी आग बबूला हो गए। उन्होंने पीए हुए पीए को आदेश दिया, “इन आदमियों के सीएमओ को तत्काल दरबार में हाज़िर होने का आदेश दिया जाए। अगर वह हमारे दरबार में नहीं आता तो उसे तत्काल निलंबित किया जाए, बिना काग़ज़ी ऑर्डरों के। उनकी ज़ुबान ही लिखित ऑर्डर समझे जाएँ। कमाल है? लापरवाही की भी हद होती है। स्वर्ग से हमारे कुत्ते का इलाज करने के लिए सुश्रुत तक आ गए हैं और एक ये सरकारी दामाद है कि.…”

पीए हुए पीए ने टूटी फूटी भाषा में आदमियों के सीएमओ को फोन किया। हालाँकि उसकी ज़ुबान लड़खड़ा रही थी पर आदमियों का सीएमओ उसके कहने का मतलब समझ गया। 

असल में नेताजी के ज़िले के आदमियों के सीएमओ साहब ख़ुद बीमार चल रहे थे। दूसरे उन्होंने सोचा कि वे आदमियों के डॉक्टर हैं। पता नहीं बुखार में उन्होंने कंपनी की दवाओं का प्रचार करने वाले एमआर की कौन सी गोली खा ली थी। सच पूछो तो जबसे वे सीएमओ हुए थे तबसे वे दवाइयों के नाम तक भूल गए थे। बस, उन्हें याद थे तो एमआरों के नाम। जहाँ से उन्हें मरीज़ों को उनकी बताई दवाई लिखने खिलाने का कमीशन मिलता था। 

बीमारी की हालत में इससे पहले कि वे नेताजी के कबाड़ में पसरे कुत्ते की सेवा के लिए हाज़िर होते रास्ते में ही नेताजी का फोन आ धमका, “अरे यार! कहाँ हो? कब से कुत्ता तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। तुम आओ तो उसका ट्रीटमेंट शुरू हो। देखो, इतनी लापरवाही अच्छी नहीं। मैं तुम्हें अपने ज़िले में इसलिए नहीं लाया था कि.... “

“...पर सर मैंने तो सोचा था कि ये केस डंगरों के सीएमओ का है सो..…”

“कहाँ से डॉक्टरी की है यार? इतना भी नहीं समझते कि पावर वालों का कुत्ता पावर वालों से भी कहीं अधिक पावरफ़ुल होता है? घर में बीवी को कुत्ते के बीमार होने के चलते एक सौ दस बुखार हो रहा है और एक तुम हो कि…”

“सिर पर पाँव रखे आ रहा हूँ सर! मैं ख़ुद ही बीमार हो गया था। सॉरी सर! देर हो गई!”

“तो ऐसा करो, पहले कहीं अपना इलाज करवाओ। हम तुम्हें इलाज करवाने के लिए निलंबित कर रहे हैं। जो हमारे कुत्ते का इलाज समय पर नहीं कर सका वह हमारे वोटरों का इलाज क्या ख़ाक करेगा? इतने कम रेट में भी क्या हम तुम्हें इसलिए अपने गृह ज़िले में लाए थे? हमने तुम्हें अपने ज़िले में लाकर कितनी बड़ी भूल की है, आज पता चला। ओके डियर! अब मज़े से अपना इलाज करवाओ। हमारे कुत्ते का इलाज करने के लिए स्टेट के बीसियों खड़े हैं सिर के बल। इसे कहते हैं प्रोफ़ेशन से प्यार यार!”

उधर नेताजी का फोन कटा तो आदमियों के सीएमओ को लगा ज्यों इधर उनका गला कट गया हो। नेताजी की पावर से तो वे पहले से ही अवगत थे, पर तब पहली बार उन्हें उनके कुत्ते की पावर का भी पता चला। जब उनका कुत्ता ही इतना पावरफ़ुल है तो उनके सियार, लोमड़ कितने पावरफ़ुल होंगे, सीएम साहब ही जानें!

1 टिप्पणियाँ

  • 25 Mar, 2020 07:17 PM

    हमेशा की तरह बहुत खूब

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