पोटली 

शबनम शर्मा

बड़े नाज़ों से पाल पोस
मैंने पकड़ा दी अपने
प्राणों की डोर किसी
अनजान पथिक को,
देना चाहती समस्त          
संसार की ख़ुशियाँ,         
कुछ कल्पना भरी,         
कुछ यथार्थ से जुड़ी      
परन्तु कई जगह              
असमर्थ हो जाती          
दृढ़ता से कह सकती,          
मैंने पकड़ाई है तुम्हें          
जाते हुए इक यादों भरी          
बड़ी क़ीमती पोटली।         
बिटिया, जब कभी भी          
मेरी याद आये, खोल          
कर कुछ निकाल लेना          
उसे इस्तेमाल भी करना          
वही है इक याद भरी         
संस्कारों की पोटली,         
जो तुम्हें कभी भी          
भटकने न देगी। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें