फूलों की आरज़ू में बड़े ज़ख्म खाए हैं
लेकिन चमन के ख़ार भी अब तक पराए हैं
उस पर हराम है ग़म-ए-दौरां की तल्ख़ियाँ
जिसके नसीब में तेरी ज़ुल्फों के साये हैं
महशर में ले गई थी तबीयत की सादगी
लेकिन बड़े ख़ुलूस से हम लौट आए हैं
महशर=निर्णय का दिन, जहाँ पर उत्पात हो रहा हो
ख़ुलूस=खुलेआम
आया हूँ याद बाद-ए-फ़ना उनको भी ‘अदम‘
क्या जल्द मेरे सीख पे इमान लाए हैं
बाद-ए-फ़ना=मृत्यु के बाद