फूल
गौरीफूल खिलते हैं ख़ूबसूरत
फिर न जाने कब उजड़ते
टूटकर बिखरते पतझड़ में
कुछ सूख जाते कुछ हैं गिरते
मौसम का बदलाव है निश्चित
न निराश होते न ही रूठते
न मायूस होते न हैं डरते
हर बदलाव का कर वो सामना
फिर खिल उठने को हैं लड़ते
देकर अपनी ख़ुशबू सबको
त्याग अपना जीवन करते
रोज़ नई सुबह-सा ये भी
मुसकराकर हैं पुनः खिलते।