फिर आई सर्दी
अनिल गुप्ता 'अनिल'सर्द ऋतु आते ही रजाई की याद आती है एक वो ही है जो ठंड में भी गर्मी का अहसास दिलाती है।
कभी-कभी लगता है कि जिन लोगो के पाससिर छुपाने को छत नहीं है, जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं हैं, कड़ाके की ठंड में ओढ़ने को रजाई नहीं है– वो अपना गुज़र-बसर कैसे करते होंगे, यह सोचकर ही ठंडी आह निकलने लगती है।
एक दिन ठंड शुरू होते ही पिताजी कहने लगे, "आज गजक लाएँगे ठंड में गजक खाने का अलग ही मज़ा है।"
मैंने कहा, "पिताजी आप से कुछ कहना है।"
वे बोले, "हाँ, कहो क्या बात है?"
"पिताजी आज आप गजक की जगह कुछ और ला सकते हैं?"
"हाँ, हाँ कहो, क्या लाना है?"
"पिताजी यहाँ से थोड़ी दूर एक झोपड़ी है। वहाँ पर एक अम्मा ठंड से ठिठुर रही है, उनके लिए एक रजाई ला दो। मुझे गजक नहीं चाहिए।"
मेरी बात सुनकर माँ की आँखों से आँसू निकल आए पिताजी ने कहा, "अरे वाह! अब तो आप समझने भी लगे हो। आज रजाई भी आएगी और गजक भी चलो तुम्हारे हाथों से अम्माजी को देना।"
झोपड़ी के सामने गाड़ी रुकी, वह बाहर आ गई, "यह लो अम्मा रजाई और मिठाई।"
अम्मा ने अतिथि के आगे झोली फैला दी, "मेरे बेटों ने मुझे घर से निकाल दिया और इस छोटी सी बेटी ने मुझे ठंड से बचा लिया।"
1 टिप्पणियाँ
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बहुत ही सटीक कहानी है । अनिलजी आपको बहुत बहुत बधाई हो ।