पत्रकारिता

01-02-2021

पत्रकारिता

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 174, फरवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

राजनीति विज्ञान में एम.ए. करने के वह बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य करने लगा। भाषा पर अच्छी पकड़ होने के कारण वह कुछ ही समय में तरक़्की की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। अपने लेखन की बदौलत समाज के रुसूख़दार लोगों से उसका संपर्क बढ़ने लगा। कुछ ही समय में उसे डाक से अनेक ऐसे पत्र मिलने लगे जिनमें उसके किसी न किसी लेख की प्रशंसा रहती थी। वह जब कभी उन पत्रों को अध्यापन से सेवानिवृत अपने पिता को दिखाता, वे उन्हें पढ़कर शांत भाव से एक तरफ़ रख देते थे। 

यह सिलसिला डेढ़ साल तक चला। उसके बाद उसे अनेक ऐसे पत्र भी मिलने लगे जिनमें लिखने वाले प्रशंसा के बजाय उसकी आलोचना करने लगे थे। कुछ पत्रों में तो उसके लिए अशोभनीय बातें भी लिखी जाने लगीं थी। एक दिन ऐसे कुछ पत्र उसके पिता की नज़र में आए तो वे उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले, "मुझे ख़ुशी है कि अब तुम पत्रकारिता करने लगे हो।"

अपने अनुभवी और ईमानदार पिता के मुँह से यह सुनकर उसने मुस्कराते हुए कहा, "पापा, मैं तो शुरू से ही पत्रकारिता कर रहा हूँ।"

उसके पिता उसके कंधे को थपथपाते हुए बोले, "नहीं! जब तुम्हें सिर्फ़ प्रशंसा भरे पत्र मिलते थे, तब तुम चाटुकारिता किया करते थे।"

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