पर्वत से नदिया

01-02-2021

पर्वत से नदिया

अविनाश ब्यौहार (अंक: 174, फरवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

पर्वत से नदिया
उतर रही है
मैदानों में।

कल-कल करता
झरना-
संगीत सुनो।
ख़्वाबों को 
नीड़ के जैसा
तो बुनो॥

बया की चहक
घोल रही-
मिसरी सी कानों में।

उतर रही
धरती पर
धूप की परी।
छाँव मगर
लगती है
कुछ डरी-डरी॥

क्या अनोखा 
स्वाद होता
नागपुरी पानों में।

भरती अगर
पेट में
कुलाँचे भूख।
है सामने 
आ खड़ा
होता रसूख़॥

मिलती है
क्षुधा अक़्सर
बाजरे के दानों में।

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