पप्पू का स्कूटर

15-05-2020

पप्पू का स्कूटर

विजय हरित (अंक: 156, मई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

भगवान ने इंसान बनाए, वही कुछ नमूने भी बनाए हैं। आज मैं उन्हीं में से एक नमूने पुष्पेंद्र उर्फ़ पप्पू की कहानी आप लोगों को सुना रहा हूँ, अपना पप्पू एक नंबर का फेंकू, झूठ बोलने में पारंगत था। ऐसा नहीं था कि पुष्पेंद्र दिखने में भी पप्पू लगता हो, देखने में तो ख़ैर स्मार्ट था लेकिन झूठी सच्ची कहानी सुना कर वह लोगों को भरपूर पकाता था; साथ ही थोड़ा उनका मनोरंजन भी हो जाता था। फ़ाइनल ईयर का स्टूडेंट था और बड़े-बड़े सपने देखा करता था। नीरजा उसकी क्लासमेट थी जिसे हर वक़्त वह इंप्रेस करने के चक्कर में लगा रहता था। 

एक रोज़ ख़ाली पीरियड में क्लास के लड़के और लड़कियाँ उसे घेर कर बैठे थे और हमारा पुष्पेंद्र सभी का झूठे सच्चे क़िस्सों से सबका मनोरंजन कर रहा था। बातों-बातों में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ाई की बात आई। भाई साहब बोले तुम लोग यक़ीन नहीं करोगे मैं दो बार एवरेस्ट पर चढ़ चुका हूँ। इस पर नीरजा ने कहा, “लेकिन न्यूज़ में तो इस विषय में कभी तुम्हारे बारे में सुना या पढ़ा नहीं।” 

पुष्पेंद्र ने तपाक से उत्तर दिया, “बस यही फ़र्क है मुझ में और तुम लोगों में, मैं पब्लिसिटी से बेहद नफ़रत करता हूँ। मैंने चैनल वालों को साफ़ मना कर दिया था, भाई मुझे कोई पब्लिसिटी नहीं चाहिए। कृपया आप लोग मेरे विषय में कुछ ना दिखाएँ।” इस पर सभी छात्र हँसने लगे। एक छात्र ने पूछ लिया पुष्पेंद्र तुम्हें कार चलानी तो आती होगी, पुष्पेंद्र ने तपाक से उत्तर दिया, “ले कार चलाना मैं तो हवाई जहाज़ तक चला सकता हूँ ।है ही क्या हवाई जहाज़ चलाने में बस कार की तरह चलाओ और फिर एक लीवर ऊपर को कर दो प्लेन उड़ने लगेगा।” तो ऐसे थे हमारे पुष्पेंद्र उर्फ़ पप्पू । अब मैं आपको 6 साल आगे लिए चलता हूँ।

पुष्पेंद्र का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा था, उसे ग़ुस्सा था उस मैनेजर पर जिसने इस चिलचिलाती गर्मी में इस खटारा स्कूटर पर दिल्ली से नोएडा ऑफ़िस के काम से भेजा था। स्कूटर कहीं भी रुक कर खड़ा हो जाता था और उसे स्कूटर स्टार्ट करने के लिए बीसीओं किक मारनी पड़ती थी। “लग रहा है मैनेजर का बच्चा इस स्कूटर को हड़प्पा की खुदाई से निकालकर लाया है” उसने मन ही मन कहा। वही हुआ वापस आते समय एक जगह खटारा स्कूटर रुक कर खड़ा हो गया। 50किक मारने के बाद भी स्टार्ट नहीं हुआ। पुष्पेंद्र स्कूटर को किसी तरह खींच कर एक स्कूटर मैकेनिक की दुकान पर ले आया। मैकेनिक ने बताया भाई साहब स्कूटर का इंजन बैठ गया है, कल तक ठीक होगा, पुष्पेंद्र के पास कोई चारा नहीं था। उसने कहा ठीक है, “भाई ठीक कर देना मैं कल आकर ले जाऊँगा।”

गर्मी और पसीने के कारण पुष्पेंद्र की बुरी हालत थी, उस पर बस स्टैंड के लिए उसे तक़रीबन आधा किलोमीटर चलना पड़ा। किक मारने के कारण शर्ट का बीच का बटन टूट गया था जिसमें से पेट दर्शन दे रहा था। वह मन ही मन मैनेजर को गालियाँ दे रहा था और बस का इंतज़ार कर रहा था। तभी पुष्पेंद्र ने देखा एक चमचमाती हुई लग्ज़री गाड़ी उसके पास आकर रुकी और उसमें से एक स्टाइलिश लेडी बाहर निकली, उसने गोगल्ज़ उतारते हुए पुष्पेंद्र को देखा। पुष्पेंद्र तुरंत उसे पहचान गया अरे यह तो नीरजा है, अगर इसने मुझे इस वेश में देख लिया, शर्ट का बटन टूटा है कपड़े भी निहायत मामूली पहन रखे है, तो इज़्ज़त का भाजीपाला हो जाएगा। पुष्पेंद्र तुरंत पीछे मुड़कर दूसरी तरफ़ देखने लगा ताकि नीरजा की नज़र उस पर ना पड़े, और हाथ में लिए हेलमेट को वहीं फेंक दिया ताकि नीरजा को पता ना लगे कि वह स्कूटर पर था। उसने सोचा सालों बाद नीरजा मिली भी है तो वह इस वेश में है। उसका मन करने लगा कि धरती फट जाए और सीता की तरह वह उसमें समा जाए। लेकिन नीरजा तो उसी के कारण कार से उतरी थी, नीरजा बोली, “अरे पुष्पेंद्र तुम कैसे खड़े हो, क्या हुआ?”

पुष्पेंद्र चकरा गया फिर अपने आप को संयमित करते हुए और पुराने पुष्पेंद्र को जगाते हुए कहा, “नीरजा तुम, अरे कुछ नहीं पिछली क्रॉसिंग पर मेरी कार ख़राब हो गई थी, उसे मैं मैकेनिक के यहाँ खड़ी करके, ’कैब’ से दिल्ली जा रहा था।” अपना पेट छुपाते हुए उसने नीरजा से सफ़ेद झूठ बोला और कोई चारा भी नहीं था। कहाँ वह चमचमाती गाड़ी से उतरी और वह उससे कहता मैं स्कूटर पर था और वह ख़राब हो गया तो बात बनती नहीं।

“बस की लाइन में कैब का इंतज़ार; मैं समझी नहीं चलो कोई बात नहीं,” उसने मुस्कुराते हुए कहा। “मेरे साथ चलो मैं दिल्ली ही जा रही हूँ तुम्हें ड्रॉप कर दूँगी।”

कुछ पल पुष्पेंद्र ने सोचा जाना चाहिए कि नहीं कपड़ों से स्मेल आ रही है और एक बटन टूटने के कारण वहऔर भी कांपलेक्स में था। कहाँ नीरजा शानदार कपड़े पहने हुए थी लग्ज़री गाड़ी से उतरी थी। उसने सोचा बस से जाने में ही भलाई है; उसने कहा, “नहीं मैं मैनेज कर लूँगा।”

“अरे चलो ना कॉलेज की यादें ताज़ा हो जाएँगी…” नीरजा ने कहा।

वह नीरजा के साथ जाना तो नहीं चाहता था लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी नज़र नहीं आया इसलिए वह उसके साथ कार में बैठ गया।

हमारा पप्पू बहुत अधिक हीन-भावना से ग्रस्त था, कार की पिछली सीट पर एक राजकुमारी सी बच्ची लेटी हुई थी जो अब जाग गई थी।
पुष्पेंद्र ने पूछा, “तुम्हारी बेटी है? बड़ी प्यारी है... क्या नाम है?”

इसका जवाब बच्ची ने हींदे दिया, “माय नेम इज़ मिली।”

“वाओ! नाइस नेम, नीरजा कितने साल हो गए तुम्हारी मैरिज को?”

नीरजा ने बताया, “4 साल।”

पुष्पेंद्र के पास कंपनी का एक बैग था जो उसने पेट के आगे रख दिया था, ताकि निकला हुआ पेट दिखाई ना दे।

नीरजा ने बैग पर कंपनी का नाम पढ़ते हुए कहा अच्छा क्या तुम पीटर एंड संस मैं काम करते हो, “क्या काम करते हो?”

पुष्पेंद्र ने सोच लिया था कि नीरजा के सामने झूठ बोलने के अलावा उसके पास दूसरा कोई चारा नहीं है, वह बोला, “हाँ, मैं पीटर एंड संस में जनरल मैनेजर हूँ।” फिर पूछा, “तुम्हारे हस्बैंड क्या करते हैं?”

“राजेश बिजनेस करते हैं,” नीरजा ने बताया। “मैं भी राजेश की कंपनी में डायरेक्टर हूँ लेकिन साल में बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की मीटिंग में ही जाती हूँ।”

नीरजा बहुत अच्छा गाड़ी चला रही थी। कार में ख़ामोशी हो गई थी। पुष्पेंद्र कॉलेज और उससे जुड़ी यादों में खो गया।

वह नीरजा को शुरू से ही पसंद करने लगा था और उससे बातें करना उसे काफ़ी अच्छा लगता था। पढ़ाई में वह दोनों ही ’सो-सो’ थे। वह नीरजा को इंप्रेस करने के लिए अपने बेस्ट कपड़े पहनता था और उससे बात करने के मौक़ों की तलाश में रहता था। नीरजा और भी लड़कों से बात करती थी केवल पुष्पेंद्र तक ही सीमित नहीं थी।

धीरे-धीरे भाई साहब नीरजा से एकतरफ़ा प्यार करने लगे। एक दिन पुष्पेंद्र ने नीरजा से कहा, “आज तुम बहुत स्मार्ट लग रही हो।”

उसने कहा, “तुम भी कम स्मार्ट नहीं लग रहे।” 

वह उसकी इन छोटी-छोटी बातों को अपने लिए उसका प्यार समझने लगा। कॉलेज के वार्षिक उत्सव में दोनों ने पार्ट लिया और काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया। दोनों ने एक दूसरे को कुछ स्पर्धाओं में प्रथम आने पर बधाई दी। कॉलेज के एक टूर में भी दोनों साथ गए, वहाँ भी उन्होंने ख़ूब मज़े किए, ऐसे ही 2 साल बीत गए दोनों ही पास हो गए और उनकी पढ़ाई समाप्त होने का समय आ गया।

एक दिन पुष्पेंद्र ने उससे पूछ लिया, “क्या तुम मुझे पसंद करती हो?”

नीरजा ने कहा, “हां, क्यों नहीं? तुम मेरे अच्छे दोस्त हो।”

पुष्पेंद्र ने कहा, “दोस्त ही समझती हो या उससे भी कुछ और अधिक।”

नीरजा बोली, “बस दोस्त उससे अधिक और कुछ नहीं।”

पुष्पेंद्र ने कहा, “नीरजा मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ और तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूँ।”

नीरजा ने बताया, “जीवनसाथी चुनने का पूरा अधिकार मैं अपने मम्मी-पापा को दे चुकी हूँ। मैं प्यार-मोहब्बत में बिल्कुल विश्वास नहीं करती। मेरे लिए जो भी निर्णय मेरे मम्मी-पापा लेंगे वह ठीक ही रहेगा।”

पुष्पेंद्र ने कहा, “क्या तुम समझती हो अनजाना सा आदमी तुम्हारे जीवन में आकर तुम्हें वह प्यार दे सकता है जो मैं तुम्हें दूँगा। नीरजा मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूँगा, मेरा फ़्यूचर बड़ा ब्राइट है। बस एक-दो साल में मेरे पास वह तमाम सुख सुविधाएँ होंगी जिसकी किसी को कल्पना होती है।”

“मुझसे ऐसी बातें करने का कोई मतलब नहीं है। तुम मेरी फ़ैमिली से बात कर लो अगर वह तुम्हें मेरे लायक़ समझेंगे तो मुझे कोई एतराज़ नहीं होगा,” नीरजा ने कहा।

“ठीक है संडे को मैं तुम्हारे यहाँ आता हूँ और उनसे तुम्हारा हाथ माँग लेता हूँ, मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास है तुम्हारे पापा मुझे ना नहीं कह पाएँगे.” पुष्पेंद्र ने जोश में आकर कहा।

कहने को तो उसने नीरजा से बड़ी-बड़ी बातें कर दीं पर भविष्य का उसे कुछ पता नहीं था।

संडे के रोज़ पुष्पेंद्र नीरजा के घर गया, घर बड़ा ही शानदार था। नीरजा के पापा क्लास वन ऑफ़िसर थे। उन्होंने अपनी रोबीली आवाज़ मैं पुष्पेंद्र से पूछा, “हाँ तो मिस्टर पुष्पेंद्र, तुम्हारे पापा सेक्शन ऑफ़िसर हैं और तुमने पढ़ाई पूरी कर ली है। अब तुम्हारे फ़्यूचर प्लांस क्या हैं?”

“बस अंकल अब बढ़िया सी नौकरी करूँगा और सारी सुख-सुविधाएँ पैदा करूँगा ताकि मेरी होने वाली पत्नी को कोई असुविधा ना हो,“ पुष्पेंद्र ने जवाब दिया।

“मतलब यह कि अभी तुम कुछ नहीं कमाते..। ठीक है जब तुम इस लायक़ हो जाओ, सारी सुख-सुविधाएँ जुटा लो तब आना नीरजा का हाथ माँगने। तुम्हें पता नहीं है- नौकरियाँ मिलना इतना आसान नहीं है। नौकरी पेड़ पर लगा हुआ कोई फल नहीं है जो तुम हाथ बढ़ाकर तोड़ लोगे,” नीरजा के पापा ने थोड़ा सख़्त लहजे में कहा।

पुष्पेंद्र ने कहा, “इतना मुश्किल भी नहीं है। अच्छे नंबरों से पास हुआ हूँ, अच्छी नौकरी तो मिल ही जाएगी।”

“ठीक है जब मिल जाएगी तब आना, अभी मैं तुम्हारे लिए सोच भी नहीं सकता। एक बेरोज़गार के हाथ में मैं अपनी लड़की का हाथ नहीं दे सकता,” अंकल ने फटकारते हुए कहा।

पुष्पेंद्र बढ़-चढ़कर बोलने का आदी तो था ही बोला, “देखिएगा अंकल एक दिन आप और नीरजा पछताएँगे। मुझे मालूम है कि मैं बहुत जल्दी बहुत बड़ा आदमी बनने जा रहा हूँ। धन-दौलत, गाड़ियाँ, नौकर-चाकर सब होगा मेरे पास,  तब आप लोगों को बहुत अफ़सोस होगा, कि आपने आया हुआ मौक़ा अपने हाथ से गँवा दिया।”

नीरजा के पापा ने कहा, “फ़िलहाल तो मुझे तुमसे बात करके बहुत अफ़सोस हो रहा है। अब तुम जाओ इसी में तुम्हारी भलाई है।”

आज वह सोच रहा था की। कितनी बढ़-चढ़कर बातें उसने नीरजा के पापा और नीरजा से की थीं। हक़ीक़त में कुछ भी नहीं कर पाया था। पीटर एंड संस में मामूली सी नौकरी करता था, और कहाँ नीरजा इतनी शानदार और लग्ज़री लाइफ़ जी रही थी। पुरानी बातों को सोच कर उसे अपने ऊपर हँसी भी आ रही थी।

काफ़ी देर तक दोनों कॉलेज के क़िस्से शेयर करते रहे और हँसते रहे, पीछे से मिली की आवाज़ आई, “मम्मा बिस्कुट दे दो भूख लग रही है। मम्मा बिस्कुट यूएस वाले देना।”

“ठीक है बेटा यूएस वाले ही दूँगी।” नीरजा ने डैशबोर्ड खोलकर बिस्किट का एक पैकेट निकाला और पीछे मिली को दे दिया उसने एक पैकेट पुष्पेंद्र को भी दिया।

“अरे वाह यूएस के बिस्किट मुझे भी बड़े अच्छे लगते हैं, मैं भी जब यूएस जाता हूँ तो ढेर सारे बिस्किट लेकर आता हूँ,” पुष्पेंद्र अपनी पुरानी फेंकने की आदत से बाज़ नहीं आया और यूएस को बीच में ले आया।

नीरजा ने पूछा विदेश जाते रहते हो।

“हाँ विदेश जाना तो लगा ही रहता है। बस यह समझ लो नीरजा की साल में चार-पाँच महीने तो विदेश में रहना ही पड़ता है,” पुष्पेंद्र ने फेंकते हुए कहा।

नीरजा समझ गई कि पुष्पेंद्र झूठ बोल रहा है। वह अपनी हँसी को बमुश्किल रोक पाई लेकिन सीरियस होते हुए बोली, “कंपनी की तरफ़ से जाते हो?”

“कंपनी की तरफ़ से तो कभी-कभी; ज़्यादातर तो अपने आप ही जाता हूँ। बस यह है कि विदेश जाने में दो दिन तक पैरों में चीटियाँ सी काटती रहती हैं,” पुष्कर ने शेखी बघारते हुए कहा।

नीरजा समझ नहीं पाई और उसने पूछा, चींटियाँ सी क्यों काटने लगती है भला?”

“अरे वही जैट लेग के कारण। क्यों तुम्हें नहीं होता क्या जैट लेग?” अनभिज्ञ पुष्कर ने पूछा।

नीरजा तुरंत भाँप गई, पप्पू की असलियत। इस बार वह अपनी हँसी पर कंट्रोल नहीं कर पाई। ज़ोर से हँसी और बोली, “हाँ! मेरे साथ भी ऐसा होता है।”

यह वह बंदा कह रहा था जिसने अभी तक शायद एयरपोर्ट भी ठीक से नहीं देखा था।

नीरजा और उसका बेवकूफ़ बनाते हुए बोली, “रुकते तो फ़ाइव स्टार होटल में ही होगे?”

“हाँ, नीरजा फ़ाइव स्टार से कम तो चलता ही नहीं है; तुम तो जानती ही हो मेरा रहन सहन।”

“हाँ, बिल्कुल सैलरी बहुत होगी तुम्हारी।”

“अरे नहीं नीरजा वैसे तो बहुत बड़ी कंपनी है लेकिन पैसे देने के मामले में भिखारी है।”

नीरजा का और अधिक गप सुनने का मन नहीं था इसलिए टॉपिक बदलते हुए बोली, “शादी हो गई तुम्हारी?”

“हां, करनी ही पड़ी। क्योंकि तुम लोगों के नसीब में तो मैं था ही नहीं,” पुष्पेंद्र ने ऐसे कहा जैसे नीरजा के हाथ से कोई अनमोल मोती खो गया हो।

बातें करते[करते दिल्ली आ गया। पुष्पेंद्र नीरजा को अपना घर नहीं दिखाना चाहता था इसलिए बोला बस मुझे यहीं उतार दो मुझे इस मार्केट में कुछ काम है।

“ठीक है, पुष्पेंद्र सालों बाद तुमसे मिलकर बड़ा अच्छा लगा। मेरा विज़िटिंग कार्ड रख लो कभी मन करे तो बातें कर लेना, और हाँ कभी समय मिले तो अपनी फ़ैमिली के साथ घर आना।”

“ठीक है नीरजा ज़रूर आऊँगा। मैं फोन करूँगा मोबाइल पर मेरा नंबर आ जाएगा, तुम्हारी भी जब इच्छा करे मुझसे बातें कर लेना,” पुष्पेंद्र ने गाड़ी से नीचे उतरते हुए कहा।

नीरजा ने कार आगे बढ़ा ली। पुष्पेंद्र ने राहत की साँस ली और मन ही मन बोला भगवान ने आज बचा लिया।

कार से उतर कर उसने विज़िटिंग कार्ड देखा तो उसे बहुत तेज़ झटका लगा। कार्ड पर लिखा था –
“नीरजा गुप्ता
डायरेक्टर पीटर एंड संस”।

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