पापा मैं तारा बन गयी

23-03-2017

पापा मैं तारा बन गयी

गुडविन मसीह

आधी रात गुज़र चुकी थी। आर्यन को नींद नहीं आ रही थी। बेचैनी इतनी थी, कि वह बार-बार करबट बदल रहा था और सोच रहा था कि उसे नींद क्यों नहीं आ रही है? अचानक उसे याद आया कि लोग कहते हैं, जब किसी को कोई सपने में देखता है, तो उसे नींद नहीं आती है। लेकिन उसे सपने में कौन देख रहा होगा...? उसने मन में सोचा, फिर उसे याद आया कि जब उसकी माँ को नींद नहीं आती थी, तो उसके पापा उनसे कहा करते थे, शकुन्तला, तुम्हें जब भी रात को नींद नहीं आती है तो उठकर एक किताब पढ़ लिया करो, किताब पढ़ते-पढ़ते इंसान को कब नींद आ जाती है कुछ पता ही नहीं चलता या फिर किसी के साथ बातचीत करने से भी आँख लग जाती है। 

आर्यन को किताबें पढ़ने का शौक़ तो था नहीं इसलिए उसने सोचा भूमिका को नींद से जगा लूँ। उसके साथ बातचीत करके नींद आ जायेगी। उसने पास में बिस्तर पर सो रही भूमिका को जगाने के लिए उसने हाथ बढ़ाया और फिर यह सोचकर कि भूमिका दिन भर की थकी-हारी होती है। सुबह से लेकर शाम तक घर के बहुत सारे काम निबटाती है। इसके अलावा साग-सब्जी लाने के लिए बाज़ार भी जाती है अगर उसे जगा दूँगा तो उसकी नींद पूरी नहीं होगी और नींद पूरी नहीं होगी तो सुबह को उसकी आँख देर से खुलेगी, जिससे घर का सारा टाईम मैनेजमेंट बिगड़ जायेगा। वैसे भी भूमिका अगर रात को सही से सो नहीं पाती है, तो सुबह को उसका पूरा शरीर दर्द करता है और वह चिढ़चिढ़ी हो जाती है। बात-बात पर उस पर झल्लाती है। यही सब सोचकर उसने भूमिका की तरफ बढ़ा अपना हाथ समेट लिया और लेटकर खिड़की से दिखायी दे रहे आसमान को निहारने लगा। 

आसमान एकदम साफ़ था। चाँद भी पूरा दिखाई दे रहा था। उसके इर्द-गिर्द झिलमिलाते तारे ऐसे लग रहे थे, जैसे किसी ने काले-सियाह कपड़े पर रंगीन छोटे बल्बों की झालर टाँक दी हो। सब कुछ एक ख़ूबसूरत नज़ारे जैसा था। 

उसी समय उसके कानों से एक आवाज़ टकरायी, "क्यों पापा, नींद नहीं आ रही है?" 

"अरे यह तो मेरी बेटी चाँदनी की आवाज़ है?" वह एकदम उठकर बैठ गया। फिर उसने चाँदनी को खिलखिला कर हँसते हुए सुना, तो वह चौंक कर इधर-उधर देखने लगा। 

"इधर-उधर क्या देख रहे हो पापा, इधर देखो, मैं यहाँ हूँ, आसमान में, आपकी खिड़की के ठीक सामने।" 

आर्यन ने एकदम खिड़की के सामने देखा। आसमान में दो तारे टिमटिमा रहे थे। वह उन तारों को टकटकी लगाकर देखने लगा। उसे ऐसा लगा जैसे उन दो तारों में से एक तारा उससे कह रहा हो, "पापा मैं तारा बन गयी, तभी तो आप यहाँ दो तारे को देख रहे हो। याद करो पापा, मैं आपसे कहा करती थी न कि मैं बहुत जल्दी तारा बन जाऊँगी और आपकी खिड़की के सामने आकर चमका करूँगी और आप मुझे देखकर ख़ुश हुआ करना। क्यों पापा, याद आया? पापा, प्लीज़, आपसे रिक्वयेस्ट है, आप इस खिड़की को कभी बंद मत करना, मैं यहीं से आपको और मम्मी को देख लिया करूँगी। पापा, यहाँ और भी बहुत से तारे हैं, मैं उनके साथ खूब खेलती हूँ, दौड़ती-भागती हूँ। मैं यहाँ बहुत ख़ुश हूँ, मुझे यहाँ बहुत अच्छा लगता है, यहाँ सभी तारे मेरे दोस्त बन गये हैं। लेकिन पापा, मुझे आपकी बहुत याद आती है। पापा, मैं बहुत गंदी लड़की थी न? आपको बहुत तंग करती थी, आपका कहा नहीं मानती थी। अब लगता है कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। पापा, मैं तारा तो बन गयी पर आपके सपनों को साकार नहीं कर पायी, जिसका मुझे बेहद अफ़सोस है। पापा, मुझे य्क़ीन है, आपने मुझे माफ़ तो कर दिया होगा, क्योंकि मैं आपकी लाडली जो थी।"

जैसे-जैसे चाँदनी की आवाज़ आर्यन के कानों से टकरा रही थी, वैसे-वैसे चाँदनी का अक़्स आर्यन की आँखों के सामने उभरता जा रहा था। 

सत्ताईस साल पहले भूमिका से जब आर्यन की शादी हुई थी, तो वो दोनों मिलकर यही सपना देखते थे कि उनके घर के आँगन में बच्चे के रूप में कोई फूल खिलेगा, जिसकी ख़ुशबू से उनका घर महक उठेगा, चिड़ियों की चहचहाट की तरह उसकी किलकारियों से उनका घर गूँजा करेगा, लेकिन देखते-ही-देखते पूरे सात साल गुज़र गये, भूमिका की कोख में न तो किसी बेटे ने पाँव पसारे, न ही किसी बेटी ने। बड़े-से-बड़े डॉक्टर को दिखा लिया। भगवान् के सामने भी रो लिए, गिड़गिड़ा लिए, लेकिन भूमिका की कोख खाली-की-खाली ही रही। जिस भूमिका को घर वाले प्यार से भूमि कहा करते थे, उसी भूमिका को अब बंजर समझकर सब नाक-भौं सिकोड़ने लगे थे। माँ ने तो भूमिका को किचिन में भी जाने को मना कर दिया था। कहती थीं, तू बाँझ है और बाँझ स्त्री के चौके में जाने से चौका अपवित्र हो जाता है। पहले माँ किसी भले काम से कहीं जाती थीं, तो ख़ुशी-ख़ुशी भूमिका को भी अपने साथ ले जाती थीं, लेकिन जब भूमिका माँ नहीं बन पायी तो माँ कहने लगीं थीं, "तू निर्वंशनी है, तेरे साथ बाहर जाने से अपशकुन हो जायेगा, हमारा बना-बनाया काम बिगड़ जायेगा।"

मौहल्ले-पड़ोस की औरतें भी भूमिका के सामने आने से कतराने लगीं थीं। उच्च शिक्षा प्राप्त आधुनिक विचारों वाली भूमिका, जो निहायत ही हँसमुख और मिलनसार थी, कब तक अपने आदर्शों का दामन थामे आशाओं के धरातल पर खड़ी रहती। कभी तो उसे टूटकर बिखरना ही था और वह टूटकर बिखरने लगी। निराशा, हताशा की गहरी खाई में धसने लगी। वह जी भर के रोती और चुप हो जाती। भगवान के आगे सिर पटकती और कहती, कि अगर माँ बनने से ही औरत पूर्ण औरत कहलाती है, तो उसने उसकी कोख को सूना क्यों रखा? लेकिन भगवान की पता नहीं क्या मर्ज़ी थी, वह भूमिका की क्यों नहीं सुन रहा था, यह तो भगवान ही जानता होगा।

हर समय हँसती-खिलखिलाती रहने वाली भूमिका एकदम ऐसे ख़ामोश हो गयी, जैसे वह हँसना-बोलना ही नहीं जानती हो। दिन भर सजने-सँवरने वाली भूमिका को अब कई-कई दिन नहाने और कपड़े बदलने की भी याद भी नहीं रहती थी। फूल की तरह खिली हुई दिखायी देने वाली भूमिका, अब एकदम बीमार और मुरझायी-सी दिखायी देने लगी थी। आर्यन भी उसे कब तक झूठी तसल्ली देता, ताने तो उसे भी खाने को मिलते थे, उलाहना तो उसे भी मिलती थी। घर से लेकर ऑफ़िस तक सभी लोग उससे तरह-तरह की बातें करते। कोई कहता ऐसा करो, कोई कहता वैसा करो, कोई कहता यहाँ दिखा दो, तो कोई कहता वहाँ दिखा दो।

सारी उम्मीदें टूट चुकी थीं। ज़िन्दगी से पूरी तरह वह और भूमिका हार चुके थे कि अचानक एक दिन शाम को ऑफ़िस से घर आते वक्त आर्यन ने एक जगह लोगों की भीड़ लगी देखी। वह भी उस भीड़ में शामिल हो गया। अन्दर जाकर देखा, कचरे की पेटी में एक नवजात कन्या पड़ी हुई थी, जिस पर लोग तरह-तरह की बातें बना रहे थे। कोई कह रहा था, "पता नहीं किस का पाप है, जिसे यहाँ कूड़े में फेंक दिया," तो कोई कह रहा था, "जब पालने की औक़ात नहीं थी, तो पैदा ही क्यों कर लिया?" कोई कह रहा था, "बेटे की चाहत में बेटी हो गयी होगी, इसलिए यहाँ फेंक दिया," तो कोई यह भी कह रहा था, "पहले तो ख़ूब मस्ती मारी और जब मस्ती का फल आ गया तो समाज के डर से उसे कूड़े में फेंक दिया, मरने के लिए।" 

सब बातें बना रहे थे लेकिन आर्यन मन-ही-मन यह सोचकर ख़ुश हो रहा था कि भगवान ने यह बच्ची उसके लिए दी है, वह इसे अपने साथ ले जाएगा, इसकी परवरिश करेगा, इसे पढ़ाएगा-लिखाएगा और अच्छा इंसान बनाकर समाज में इसे सम्मान दिलवायेगा। वैसे भी इसकी क्या ग़लती है, इसने तो अभी दुनिया में कुछ देखा भी नहीं है, अच्छाई-बुराई को जाना भी नहीं है। ग़लती तो उनकी है, जिसने इसे जन्म देकर यहाँ लोगों के ताने सुनने के लिए फेंक दिया। कहते हैं, जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है। यह बच्चा जिसका भी है, जैसा भी है, वह इसे पालेगा। भूमिका भी इस बच्ची को पाकर ख़ुश हो जायेगी। उन दोनों ने तो पहले ही इस बात का मन बना लिया था कि भगवान ने उन्हें प्राकृतिक तौर पर माँ-बाप नहीं बनाया तो क्या हुआ। वह किसी बच्चे को गोद ले लेंगे।

आर्यन ने पुलिस से उस बच्ची को गोद लेने की इच्छा ज़ाहिर की। पुलिस ने काग़ज़ी कार्यवाही के साथ सहर्ष वह बच्ची को आर्यन को सौंप दी। 

बच्ची को पाकर भूमिका ऐसे ख़ुश हो रही थी, जैसे किसी डूबते हुए को किनारा मिल गया हो और मरने वाले को जीने का सहारा। भूमिका ने बच्ची को अपने सीने से चिपटा लिया। भले ही बच्ची को माँ का दूध नसीब नहीं हुआ लेकिन माँ के शरीर की गरमाहट को पाकर बच्ची में जैसे जान आ गयी। वह हाथ-पाँव चलाने लगी। आर्यन और भूमिका ने उसका नाम चाँदनी रखा। उसके नामकरण वाले दिन उन्होंने पूरे मौहल्ले की दावत की और ख़ूब ख़ुशी मनायी। 

आर्यन को डर था कि कहीं चाँदनी का अतीत उसके साथ-साथ न चले, इसलिए उसने अपना ट्रांसफर बरेली से लखनऊ करवा लिया, ताकि चाँदनी के बड़े होने पर उसे कोई यह न बता सके कि उसे उसके मम्मी-पापा कचरे की पेटी से उठाकर लाये थे, वह उनका अपना ख़ून नहीं है। 

चाँदनी जब स्कूल जाने लायक हो गयी तो शहर के सबसे मंहगे स्कूल में उसका दाखिला करवाया। पाँचवीं कक्षा तक तो भूमिका उसे स्कूल छोड़ने और लाने जाती थी। उसके बाद जब वह बड़ी हो गयी, तो उसे स्कूल लाने-ले जाने की ज़िम्मेदारी आर्यन ने अपने ऊपर ले ली, क्योंकि वह जानता था कि आजकल का माहौल लड़कियों के हिसाब से ठीक नहीं है। उसके साथ कब कोई ऊँच-नीच हो जाये कोई नहीं जानता। वैसे भी लड़कियों की सुरक्षा के ना म पर शासन-प्रशासन तक की व्यवस्था फेल हो चुकी है।

चाँदनी को आर्यन से विशेष लगाव था। आर्यन के बिना वह कुछ भी नहीं करती थी। ऑफ़िस से आते ही वह आर्यन से लिपट जाती थी। उसके साथ खेलती थी, बातें करती थी। आर्यन भी उसके साथ हँस-बोल कर अपनी दिन भर की थकान को भूल जाता था। 
उस दिन तो आर्यन की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब चाँदनी ने पहली बार उसे टेड़ी-मेड़ी, थोड़ी गोल, थोड़ी तिकोनी रोटी बनाकर खाने को दी थी। उसने रोटी देखकर चाँदनी को प्यार से चूम लिया था और कई लोगों से इस बात का ज़िक्र भी किया था कि उसकी बेटी अब बड़ी हो गयी है, वह रोटी बनाना सीख गयी है। चाँदनी की पहली रोटी का दिन और तारीख़ आर्यन ने अपनी डायरी में लिख लिया था। आर्यन के मुँह से अपनी रोटियों की तारीफ़ सुनकर चाँदनी तो ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसने भूमिका से भी कह दिया था, "मम्मी, अब आप पापा के लिए रोटी की चिंता मत करना। आप को जब भी नानी के घर जाना हुआ करे तो चली जाया, मैं पापा के लिए रोटियाँ बना दिया करूँगी।"
 
भूमिका ने भी कह दिया था कि "हाँ अब तू सियानी हो गयी है, मेरे काम में हाथ बँटा दिया करेगी, जिससे मुझे भी घर के काम से थोड़ी राहत मिल जाया करेगी।" 

चाँदनी पढ़ने-लिखने में तो होशियार थी ही, उसे मशीनों से खेलने और नयी-नयी मशीनों के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। वह हमेशा आर्यन से कहा करती थी कि वह बड़ी होकर इंजीनियर बनेगी और उसका नाम रोशन करेगी। आर्यन ने भी सोच लिया था कि चाँदनी की इच्छा अगर इंजीनियर बनने की है, तो वह उसे इंजीनियर बनने का मौक़ा ज़रूर देगा।

आर्यन की आदत थी, वह रात को सोते समय बाहर से ताज़ी हवा आने के लिए अपने बेडरूम की बड़ी खिड़की खोल लिया करता था, जिसमें से आसमान और आसमान में हठखेली करते चाँद-सितारे साफ़ दिखायी देते थे। उसे वो सब देखना बहुत अच्छा लगता था। वह खिड़की में से घंटों आसमान को निहारता रहता था। अक्सर चाँदनी भी उसके पास बिस्तर में आकर लेट जाती थी और चाँद-तारों के बारे में उससे ख़ूब बातें करती थी। बातों-ही-बातों में वह आसमान में चमक रहे सब तारों से अलग, उसकी खिड़की के सामने नज़र आने वाले तारे को देख कर कहती थी, "पापा, मैं भी एक दिन इसी तारे की मानिंद पूरे संसार में चमकूँगी। लोग मुझे देखकर बहुत ख़ुश हुआ करेंगे और कहा करेंगे, कि यह मिस्टर आर्यन मेहता की बेटी है। देख लेना, मेरी चमक को देखकर यह तारा भी मुझसे चिढ़ने लगेगा और चिढ़ते-चिढ़ते एक दिन यह यहाँ से ग़ायब हो जायेगा, और मैं यहाँ अकेली चमका करूँगी।"

चाँदनी के छोटे-से मुँह से इतनी बड़ी बात सुनकर आर्यन उसे डाँट कर कहा करता था, "यह गंदी बात होती है, ऐसे मत बोला करो। कोई तारा छोटा या बड़ा नहीं होता, किसी तारे की चमक तेज़ और हल्की नहीं होती, सब एक-से चमकते हैं।" 

समय अरमानों के पंख लगाकर आसमान में उड़ रहा था। देखते-ही-देखते चाँदनी ने इण्टर की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर ली। चार सब्जेक्ट्स में उसे विशेष योग्यता भी मिली थी, जिसकी वजह से शहर के सभी अख़बारों में उसका फोटो भी छपा था। कॉलोनी के लगभग सभी लोगों ने घर आकर चाँदनी को बधाई दी थी। उस दिन तो उसके घर में जश्न जैसा माहौल बन गया था। लोग चाँदनी को उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दे रहे थे, उस समय आर्यन और भूमिका ऐसा महसूस कर रहे थे, जैसे चाँदनी के रूप में भगवान ने उन्हें कोई परी दे दी हो। उन्हें चाँदनी के ऊपर गर्व हो रहा था। 

चाँदनी ने इण्टर की परीक्षा के साथ ही यूपीटीयू की परीक्षा भी दी थी, जिसका परिणाम इण्टर की परीक्षा के कुछ दिन बाद ही घोषित हो गया था जिससे आर्यन और भूमिका की ख़ुशी दोगुनी हो गयी थी, क्योंकि चाँदनी ने उस परीक्षा को भी अच्छे रैंक से पास किया था और उसे देश के जाने-माने टेक्निकल इंस्टीट्यूट में बी.टेक के लिए दाखिला भी मिल गया था। 

चाँदनी लखनऊ छोड़कर बी.टेक करने के लिए बैंगलूर चली गयी। उसके जाने के बाद घर एकदम सूना और खाली-खाली लगने लगा। चाँदनी की बनाई पेंटिंग्स, फ़्लावर पॉट्स, उसका कम्प्यूटर, उसका बिस्तर, जैसे सब एकदम ख़ामोश हो गये थे। सबकी सूनी आँखों में एक ही प्रश्न नज़र आ रहा था कि चाँदनी उन सबको छोड़कर कहाँ चली गयी? उन सब चीज़ों की तरह भूमिका और आर्यन भी एकदम उदास से रहने लगे। न उनका मन खाने में लग रहा था, न घर के किसी काम में। कई दिनों तक तो आर्यन को ऐसा लगता रहा, जैसे चाँदनी ड्राइंग रूम में है, कभी लगता वह बेडरूम में अपने टेडी बियर्स के साथ खेल रही है, तो कभी लगता वह पेंटिंग्स बना रही है, कभी लगता वह टी.वी. पर कार्टून फिल्म देखकर ज़ोर-ज़ोर से हँस रही है, तो कभी लगता वह भूमिका के साथ किचिन में है, कभी उसके गार्डन में होने का आभास होता, तो कभी छत पर।

एक बार तो आर्यन को ऐसा लगा, जैसे चाँदनी गार्डन में तेज़ी से भाग रही हो, उसे भागते देख वह एकदम चीखा, "चाँदनी,ऽ ऽ ऽ ऽ ऐसे मत भागो नहीं तो गिर जाओगी", तो भूमिका ने उससे कहा, "क्या कर रहे हो आर्यन, चाँदनी कहाँ है, चाँदनी तो बैंगलूर चली गयी, अपनी पढ़ाई करने।" 

भूमिका और आर्यन जब घर में साथ खाना खाने के लिए बैठते तो उन्हें अचानक चाँदनी की याद आ जाती, और वह एकदम उदास हो जाते थे। हालाँकि दोनों लोगों की रोज़ चाँदनी से फोन पर सुबह-शाम बातें होती थीं फिर भी उनका मन नहीं मानता था। दोनों सोचते थे कि पता नहीं उसने खाना खाया है या नहीं, क्योंकि चाँदनी खाने में बहुत नखरे दिखाती थी। कभी कहती मुझे यह सब्जी पसंद नहीं, कभी कहती मैं यह नहीं खाऊँगी-वो नहीं खाऊँगी, तो कभी कहती मम्मी, आप रोज़-रोज़ ऐसा खाना क्यों बना लेती हैं। इसी बात को लेकर वह अक्सर नाराज़ हो जाती और कहती मुझे नहीं खाना है आपका खाना, तो आर्यन उसे मनाने में लग जाता और जब तक चाँदनी मान नहीं जाती थी, तब तक मनाता ही रहता था। यही सब बातें याद करके उसकी और भूमिका की आँखें नम हो जातीं।

एक दिन अचानक चाँदनी ने आर्यन को फोन पर बताया कि वह छुट्टी में घर आ रही है, तो आर्यन ख़ुशी से उछल पड़ा, उसने भूमिका को भी बताया कि चाँदनी छुट्टी में घर आ रही है। 

पूरे तीन महीने बाद चाँदनी पहली बार घर आ रही थी इसलिए आर्यन और भूमिका ने उसकी पसंद की बहुत सारी चीज़ें घर में लाकर रख दीं। 

निश्चित समय पर आर्यन और भूमिका चाँदनी को लाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुँच गये। तीन घंटे के लम्बे इंतज़ार के बाद चाँदनी की गाड़ी स्टेशन पहुँची तो आर्यन की आँखें चाँदनी को देखने के लिए बेचैन होने लगीं। वह जल्दी से चाँदनी के डिब्बे में चढ़ गया और उसका सामान उठा लाया।

घर आने के बाद आर्यन पूरे समय चाँदनी से लिपटा रहा। उससे उसकी पढ़ाई, उसके हॉस्टिल, मैस और उसकी सहेलियों के बारे में पूछता रहा। उस दिन आर्यन और भूमिका ने चाँदनी के साथ मिलकर भरपेट खाना खाया और बाहर घूमने भी गये थे। 

पूरे एक हफ़्ते की छुट्टियाँ बिताकर चाँदनी वापस बैंगलूर चली गयी। उसके बाद चाँदनी का आना-जाना लगा रहा। इस बीच आर्यन और भूमिका भी दो बार उससे बैगलूर जाकर मिल आये। 

चाँदनी के बिना आर्यन और भूमिका के चार साल कैसे कटे, ये तो वही बता सकते थे। इन चार सालों में उन दोनों ने चाँदनी को लेकर न जाने कितने सपने बुन डाले थे। आर्यन का तो कहना था कि भले ही हमारी चाँदनी इंजीनियर बन जायेगी, लेकिन उसकी शादी वह ख़ूब धूमधाम से करेगा और शादी के बाद वह चाँदनी और उसके पति को अपने पास ही रखेगा, ताकि उनका घर सूना न हो। 

चाँदनी का बी.टेक में वो आख़िरी साल था। सात सेमिस्टर कम्पलीट हो चुके थे, आठवें सेमिस्टर के बस एग्ज़ाम्स होना बाक़ी रह गये थे, जिसके लिये वह दिनरात पढ़ाई में मेहनत कर रही थी। इस बीच उसे देश की किसी अच्छी कम्पनी में प्लेसमेंट का भी ऑफ़र मिला था, लेकिन उसने उस ऑफ़र को ठुकरा दिया था, उसका कहना था कि वह जॉब करेगी तो ऐसी करेगी, जिसे लोग देखते रह जायेंगे। आर्यन को भी चाँदनी के ऊपर बहुत गर्व होने लगा था। वह बात-बात में ईश्वर को धन्यवाद देता था कि उसने उसे इतनी होनहार बेटी दी है। 

आखिरी एग्ज़ाम्स से पहले कुछ दिनों के लिए चाँदनी अपने घर आयी हुई थी और जब वह वापस अपने कॉलेज बैंगलूर जा रही थी तो अपने पापा से कह रही थी, पापा, "अब आपकी बेटी इंजीनियर बनकर ही लौटेगी। अब आप चाँदनी के नहीं बल्कि इंजीनियर चाँदनी के पिता कहलायेंगे।" 

उस समय आर्यन के साथ-साथ भूमिका की आँखों में भी ख़ुशी के आँसू तैरने लगे थे। आर्यन और भूमिका चाँदनी को हमेशा की तरह उस दिन भी स्टेशन छोड़ने गये। उसे ट्रेन में बैठाया और जब ट्रेन स्टेशन से बहुत दूर निकल गयी तो वह वापस अपने घर आ गये। 

दूसरे दिन सुबह को अपने ऑफ़िस जाने से कुछ देर पहले आर्यन ने चाँदनी को फोन करके पूछा कि वह कहाँ तक पहुँची है, तो चाँदनी ने बताया था कि बस दो-ढाई घण्टे का सफ़र और रह गया है, उसके बाद वह बैंगलूर पहुँच जायेगी। आर्यन ने कहा, "ठीक है, जब हॉस्टिल पहुँच जाओ तो फोन करके बता देना कि तुम पहुँच गयीं।"

शाम को ऑफ़िस से घर आने के बाद आर्यन ने भूमिका से कहा, "भूमिका, चाँदनी का फोन आया था? वह ठीक से हॉस्टल पहुँच गयी थी न?"

"हाँ, अभी कुछ देर पहले ही उसका फोन आया था। कह रही थी कि सफ़र की थकान की वजह से वह सो गयी थी इसलिए वह फोन नहीं कर पायी थी।" 

"ठीक है, मैं उससे बात करता हूँ," कहकर उसने चाँदनी को फोन मिलाया लेकिन चाँदनी का फोन स्विच ऑफ़ था, तो आर्यन ने भूमिका से कहा, "भूमिका, चाँदनी ने अपना फोन स्विच ऑफ़ क्यों कर रखा है, देखो न मैं उसे कितनी देर से मिला रहा हूँ। हर बार एक ही जवाब मिल रहा है, कि जिस नम्बर से आप सम्पर्क करना चाहते हैं, वह अभी स्विच ऑफ़ है?"

"हाँ तो उसने स्विच ऑफ़ कर लिया होगा, इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है, थोड़ी देर बाद करके देख लेना," कहकर भूमिका ने आर्यन के हाथ में चाय का प्याला पकड़ा दिया और दोनों चाय पीने लगे। उसी समय आर्यन के फोन पर फोन आया कि "चाँदनी हॉस्टल की सीढ़ियों से गिर पड़ी है, उसकी हालत सीरियस है। आप जल्दी बैंगलूर आ जाइये।"

इतना सुनते ही आर्यन के तो पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी। उसके हाथ से चाय का प्याला छूट कर दूर जा गिरा। भूमिका भी दहाड़ मारकर रोने लगी। उसकी चीख-पुकार सुनकर पास-पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गये। सभी उन दोनों को समझाने और तसल्ली देने में लग गये। 

वहाँ से दो घण्टे बाद बैंगलूर के लिए सीधी ट्रेन थी। आर्यन और भूमिका उसमें सवार हो गये। पड़ोस के दो और लोग उनके साथ उनकी मदद के लिए चले गये।

चाँदनी के हॉस्टल पहुँचते ही आर्यन एकदम शॉक्ड हो गया और भूमिका बेहोश होकर वहीं ज़मीन पर गिर गयी, क्योंकि उन्हें वहाँ चाँदनी नहीं, उसका पार्थिव शरीर मिला। हॉस्टल मैनेजर मिस्टर गर्ग ने बताया कि उन्हें जैसे ही पता चला कि चाँदनी हॉस्टल की सीढ़ियों गिर गयी है, वैसे ही वह उसे हॉस्पिटल ले गये। लेकिन हॉस्पिटल में डॉक्टर ने चाँदनी को देखकर कहा, "सीढ़ियों से गिरने की वजह से चाँदनी के दिमाग़ की नस फट गई और उसकी डेथ हो गई। ..."सॉरी मिस्टर आर्यन, आपको अपनी बेटी खो देने का हमें बेहद अफ़सोस है। सचमुच बहुत होनहार बेटी थी आपकी।" 

आर्यन हॉस्टल मैनेजर मिस्टर गर्ग की बात के उत्तर में कुछ नहीं कह पाये। कहते भी तो क्या कहते...? उनकी तो दुनिया ही लुट चुकी थी, जिस चाँदनी को उन्होंने गोद में खिलाया था, वहीं आज उनके कंधों पर जा रही थी, ऐसी स्थिति में कोई किसी से क्या कहता...? बड़ी मुश्किल से उन्हें और भूमिका को सम्हाला। 

इतना सब कुछ याद आते ही आर्यन की चीख निकल पड़ी और वह चाँदनी ऽ ऽ ऽ करके ज़ोर से चीखा तो पास में सो रही भूमिका की आँख खुल गयी। उसने आर्यन को सम्हालते हुए कहा, "क्यों चीख रहे हो, हमारी चाँदनी अब इस दुनिया में नहीं है। वह भगवान् के पास चली गयी।"

"नहीं भूमिका, हमारी चाँदनी मरी नहीं है, वह तारा बन गयी है। वो देखो आसमान में जो दो तारे दिखायी दे रहे हैं न, उनमें से एक तारा हमारी चाँदनी है। यह बात अभी-अभी चाँदनी ने मुझे बतायी थी।"

आर्यन की बातें सुनकर भूमिका के सीने में भी हूक-सी उठने लगी, उसका भी मन हुआ वह ज़ोर से रो दे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी, क्योंकि आर्यन को तसल्ली देने लिए वह थी, पर उसे तसल्ली देने वाला कौन था...?


 

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