पंख खोले उड़ान तो

31-03-2014

पंख खोले उड़ान तो

भूपेंद्र कुमार दवे

पंख खोले उड़ान तो ऊँची भरनी चाहिये
पर धरा पर नीड़ की भी लाज रखनी चाहिये।


बोल के लब अब आज़ाद हैं अपने देश में
हर ज़ुबां से हर वक्त गंगा निकलनी चाहिये।


ज़हर उगलने लगे, सुलगाने आग नफ़रत की
जब चले ऐसी ज़ुबां तो वह कतरनी चाहिये।


पाक हो मक़सद पर कोशिश यह करनी चाहिये
पाक हो जो राह वही राह पकड़नी चाहिये।


कुछ नहीं बस उड़ती चिन्गारियाँ दिखती बहुत हैं
अब तो किसी दीप से रोशनी निकलनी चाहिये।

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